अमेरिका में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े की गिरफ्तारी और तलाशी प्रकरण से पैदा हुए विवाद ने अब एक नया मोड़ ले लिया है. अमेरिकी अधिकारियों द्वारा एक महिला की तलाशी के वीडियो को देवयानी का वीडियो बता सोशल मीडिया में प्रचारित-प्रसारित करने की घटना सामने आयी है.
अमेरिका ने इस वीडियो को फर्जी बताते हुए खतरनाक रूप उकसानेवाला और गैर-जिम्मेदार करार दिया है. सवाल है कि अगर यह वीडियो फुटेज फर्जी है, तो इसे सोशल नेटवर्किग साइट्स पर नाम से प्रसारित करनेवाले लोग कौन हैं और उनकी मंशा क्या है? वास्तव में इस प्रकरण को सिर्फ देवयानी प्रकरण से जोड़ कर देखने की जगह सोशल मीडिया के दुरुपयोग के बढ़ते खतरे के तौर पर देखे जाने की जरूरत है.
संचार के सर्वसुलभ, वैश्विक और अहर्निश माध्यम के तौर पर सोशल नेटवर्किग साइट्स, जिसे अकसर ‘न्यू मीडिया’ की संज्ञा दी जाती है, के विकास और विस्तार ने आम आदमी को जुबान देने के साथ ही अफवाहों के कारोबारियों के हाथों में भी एक शक्तिशाली हथियार मुहैया कराया है.
पिछले दो-तीन वर्षो में हमने एक तरफ अरब जगत में क्रांतिSका सूत्रपात करने में सोशल मीडिया की भूमिका की तारीफों के पुल बांधे थे, तो दूसरी तरफ इसी मीडिया पर फैलाये अफवाहों के कारण बेंगलुरु से उत्तर-पूर्व के लोगों के घर-बार छोड़ कर भागने की घटना भी देखी. पिछले वर्ष मुजफ्फरनगर में हुई एक झड़प को व्यापक दंगे में परिवर्तित करने में भी सोशल मीडिया पर सक्रिय कुछ उपद्रवी तत्वों ने अपनी भूमिका निभायी.
अफवाह फैलाने के लिए संचार माध्यमों के इस्तेमाल का चलन पुराना है. कभी इसे बेनामी पर्चियों, चाय-पान की दुकानों पर होनेवाली अनौपचारिक वार्ताओं द्वारा अंजाम दिया जाता था, लेकिन आज सोशल मीडिया के अभूतपूर्व विस्तार ने इस काम को और आसान कर दिया है.
बदले हुए तकनीकी परिवेश में एक तरफ आम आदमी अगर सूचनाओं का राजा है, तो दूसरी तरफ वह सूचनाओं के विविधआयामी आक्रमण के सामने जोखिमग्रस्त भी है, क्योंकि सूचना और व्यक्ति के बीच अब कोई छन्नी नहीं है. ऐसे में हम तक पहुंच रही सूचनाओं का सत्यापन जरूरी है. देवयानी खोबरागड़े का फर्जी वीडियो हमें यही सीख दे रहा है.