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आप के पास जादुई छड़ी है तो सही!

जावेद इस्लाम // प्रभात खबर, रांची ========================================= लोकतंत्र के चुनावी चकल्लस में जादुई आंकड़े और जादू की छड़ी की बड़ी महिमा है. सत्ता-विलासी व सत्ता-अभिलाषी पार्टियां चुनाव अभियान के दौरान अपने हाथ में जादू की छड़ी होने के क्या-क्या दम नहीं भरतीं? और जादुई आंकड़ा पाने के लिए कौन-कौन से करतब नहीं करतीं. जैसे, अभी […]

जावेद इस्लाम // प्रभात खबर, रांची

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लोकतंत्र के चुनावी चकल्लस में जादुई आंकड़े और जादू की छड़ी की बड़ी महिमा है. सत्ता-विलासी व सत्ता-अभिलाषी पार्टियां चुनाव अभियान के दौरान अपने हाथ में जादू की छड़ी होने के क्या-क्या दम नहीं भरतीं? और जादुई आंकड़ा पाने के लिए कौन-कौन से करतब नहीं करतीं. जैसे, अभी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार ‘नमो’ को ही ले लीजिए. दिल्ली की बड़ी गद्दी के लिए जादुई आंकड़ा जुगाड़ने के फेर में क्या-क्या नहीं कर रहे हैं. वोट-जुगाड़ू प्रतिमा के लिए घर-घर से लोहा बटोर रहे हैं. जादुई आंकड़े की राह में कर्नाटक बाधक न बने, इसलिए येदियुरप्पा से हाथ मिला लिया है. येदि के योगदान से वे भ्रष्टाचारी कांग्रेस की भ्रष्ट सत्ता उखाड़ फेंकेंगे. सूबे-सूबे, शहर-शहर करोड़ों की रैलियां (संख्या नहीं, खर्च की दृष्टि से) रेले जा रहे हैं. ऐसा-ऐसा भाषण झाड़े जा रहे हैं कि बड़े-बड़े फेंकू भी फेंका जायें. वैसे इस लोकतंत्र की यह सुदीर्घ परंपरा रही है कि सत्ता मिलने के बाद नेताओं के सुर बदल जाते हैं. कुरसी पहली सीख यह सिखाती है कि ‘मेरे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है.’ मगर इस परंपरा को गैर पारंपरिक ‘आप’ ने धकियाना शुरू कर दिया है. पहला धक्का तो यही दिया कि केजरीवाल ने कुरसी पर बैठने से पहले ही कहना शुरू कर दिया कि ‘मेरे पास जादू की छड़ी नहीं है.’ भई वाह! जादू की छड़ी नहीं है, तो आपने दिल्ली की छोटी गद्दी के लिए जादुई आंकड़ा कैसे हासिल कर लिया? श्रीमान आपके पास वाकई जादू की छड़ी है और आप चाहें तो कमाल कर सकते हैं. सियासत की सड़ी-गली परंपरा से मुक्ति के लिए युक्ति कर नयी सूक्ति रच सकते हैं. वैसे भी जादू कुछ और नहीं, बल्कि जादूगर की वैज्ञानिक युक्ति का ही नाम है.

देश की व्यवस्था के डांसिंग फ्लोर पर भूमंडलीकृत पूंजीवाद आयटम डांस कर रहा है. भाजपा, कांग्रेस सहित मुख्यधारा की पार्टियां इनके साथ आइटम सांग गा रही हैं. ‘आप’ को हम होंगे कामयाब का नया गान रचना होगा और दिल्ली की छोटी गद्दी से बड़ी गद्दी की ओर कूच करने के बारे में योजना बनानी होगी. मगर यह ‘आप’ के अकेले के बस की बात नहीं, एक नये मोरचे के बारे में सोचना होगा. क्या ‘आप’ इसके लिए तैयार हैं? समाजवादी, साम्यवादी, पर्यावरणवादी, नारीवादी, आंबेडकरवादी, गांधीवादी संगठनों के साथ ‘आप’ का नया मोरचा नयी राजनीतिक धारा बहा सकता है. ‘आप’ चाहें तो 2014 के लिए जादू की एक नयी छड़ी बना सकते हैं. विश्वासमत में भाजपा ने दिखा दिया कि वह ‘आप’ के मुद्दों का समर्थन नहीं करती. वहीं कांग्रेस ने समर्थन देकर जता दिया कि वह बहुत शातिर है. ‘आप’ के साथ लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस क्या खेल करेगी, यह तो सब जानते हैं. इसलिए यही समय है, जब कांग्रेस व भाजपा के खेल का परदा स्थायी रूप से गिरा देने के लिए जादू की छड़ी खोज ली जाये.

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