।। शीतला सिंह।।
(संपादक, जनमोर्चा)
यदि सारी धरती को देशों के साथ जाति, धर्म, संप्रदायों, मान्यताओं और विश्वासों के आधार पर बांटा जा सकता है, तो उनकी काल गणना, युग आरंभ, संवत्, शक और उसकी शुरुआत भी अलग ही होगी और इस रूप में कल से हम जिस नववर्ष को मना रहे हैं, वह ब्रिटेन के ग्रेगरी के कलेंडर पर आधारित है. चूंकि ब्रिटिश साम्राज्य दुनिया के विभिन्न महाद्वीपों में भी फैला हुआ था, जिसके कारण इस काल गणना को प्रतिष्ठा मिली और यह सर्वाधिक देशों में मनाया जा रहा है.
सृष्टि का आरंभ कब और कैसे हुआ इसकी काल गणना के संबंध में भी अलग-अलग मान्यताएं हैं. लेकिन संवत शक भारत में भी अलग-अलग हैं, जिसमें शक संवत् को तो सरकारी मान्यता भी मिली हुई है. विक्रमी संवत शक भी देश के कई भागों में प्रचलित है. नये वर्ष की शुरुआत भी अलग-अलग है. पंजाब में इसे वैशाखी से मानते हैं. बंगाल और कई अन्य राज्यों में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही नववर्ष का पहला दिन है. व्यापारियों में आमतौर से आर्थिक वर्ष दीवाली से आरंभ और समाप्त होता है. होली के दूसरे दिन से भी वर्ष की शुरुआत मनायी जाती है. मुसलिमों की काल गणना भिन्न है. उनकी चंद्रमास पर आधारित यह गणना आज के वैज्ञानिक युग में भी प्रचलित है, इसलिए उनका वर्ष 355 दिन का ही होता है. जबकि जो लोग वर्ष की गणना सौरवर्ष के अनुसार करते हैं, वह 365 दिन 5 घंटा 49 मिनट में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा पाती है और इस चक्र को ही वर्ष की गणना मान ली गयी है.
ऋतुएं और मौसम मूल रूप से सौर तिथियों के अनुसार ही मनाये जाते हैं. चूंकि भारत नक्षत्र विज्ञान, अनुसंधान और खोज में अग्रणी रहा है, इसलिए उसे सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों की चाल और बदलाव का काफी ज्ञान पहले ही प्राप्त हो गया था, जिसके आधार पर 7 दिन और 12 नक्षत्रों के अनुसार इसको विभाजित किया गया, लेकिन 12 महीने के वर्ष की गणना लगभग सभी देशों में विद्यमान है. यहां अमावस्या के बाद प्रतिपदा होती है और चंद्रोदय द्वितीया को मनाया जाता है और यही समुद्र में होनेवाले परिवर्तनों को भी परिभाषित करके उसके प्रभावों के रूप में आनेवाले ज्वार और भाटा की घोषणाएं भी करता है. चूंकि पृथ्वी सौरमंडल का एक सदस्य है और उसी पर आधारित है, इसलिए पृथ्वी के परिवर्तनों का मूल्यांकन सूर्य और चंद्रमा की गतियों पर ही आधारित होंगे.
लेकिन यह पृथ्वी चलायमान है, इसकी जानकारी काफी बाद में हुई. पहले की कल्पना के अनुसार भारतीय भी यह मानते थे कि सूर्य 7 घोड़ों पर सवार होकर यह परिक्रमा करता है, इसीलिए शास्त्रों में ‘पृथ्वी अचला भव:’ की कल्पना की मान्यता थी. पृथ्वी को बाद में जन्मी मान्यताएं और धर्म भी अचला ही मानते थे, क्योंकि मनुष्य का जन्म और विकास इसी पृथ्वी पर ही हुआ है, इसलिए वे इसके चलायमान सिद्घांत को काफी देर में समङो और मान्यता दी. इसी के साथ ही यह धारणाएं भी बनीं कि राशियां ही पृथ्वी पर होनेवाले परिवर्तनों में निर्णायक भूमिका निभाती हैं, हालांकि चंद्रमास और सूर्यमास के लगभग 10 दिन के अंतर को जान कर ही यहां मलमास की परिकल्पना की गयी, जो तीन वर्षो में एक बार आता है. इस मलमास को गणनाकाल से अलग करके ही नहीं, बल्कि इसे पवित्र कार्यो के लिए भी वजिर्त किया गया.
सृष्टि कर्म के होनेवाले परिवर्तन एवं मनुष्य के जन्म-मृत्यु के व्यवधानों से मुक्त नहीं है. इसी के साथ ही इस काल गणना में सौरवर्ष की भारतीय मान्यता को अधिक स्थायित्व मिला है. इसीलिए इस पर आधारित तिथियां भी जैसे मकर संक्रांति, मेष संक्रांति आदि ब्रिटिश तारीखों के अनुसार ही पड़ते हैं. लेकिन यह धीरे-धीरे आगे की ओर ही बढ़ रही हैं. इसके लिए वह 49 सेकेंड का अंतर माना जाता है, जो समायोजित नहीं हो पा रहा है. इसी के साथ ऋतुएं और नक्षत्र भी सौर गणना पर ही आधारित हैं. नक्षत्रों के आधार पर ही भारत का किसान अपने खेत की जुताई, बुआई और भावी योजनाएं बनाता है. अभी विचार जारी है कि वास्तव में जिसे हम सूर्य का उत्तरायण या दक्षिणायन कहते हैं, उनके परिवर्तन की तिथियां 21 मार्च और 23 सितंबर है, जब दिन और रात बराबर होते हैं. साथ ही 21 जून को सबसे बड़ा दिन और 22 दिसंबर को सबसे छोटा दिन होता है. 23 दिसंबर को दिन बड़ा हो जाता है. यह बात दूसरी है कि ईसा मसीह का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था, इसलिए उनके मतावलंबी इसी दिन को बड़ा दिन के रूप में मनाते हैं.
सौरमंडल के बारे में अभी बहुत सारी जानकारियां चाहिए. वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि यदि संसार सौरमंडल के बाहर भी है, तो उसके नये ग्रह भी होंगे, यह कितना बड़ा है इसकी खोज हो रही है. इसलिए नया वर्ष और नया दिन की कल्पना भी यही होगी, जिसे हम अपना मान कर स्वीकार लें और अपनों को इससे जोड़ने के लिए शुभ आशाओं और जानकारियों का आदान-प्रदान करें. सभी को नव वर्ष की मंगलकामनाएं.