।।कृष्ण प्रताप सिंह।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
सत्ता के शीर्ष से लेकर खेल के मैदानों तक अनैतिकताओं व भ्रष्टाचारों की ऊपर से अलग-अलग दिखती दुर्घटनाएं एक के बाद एक सामने आ रही हैं. ताजा कड़ी में अब आइपीएल मैचों की स्पॉट फिक्सिंग करते तीन क्रिकेटर पकड़े गये हैं. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने इस महादुर्घटना को आजादी की चमक धुंधली पड़ते ही पहचान लिया था और लिखा था-टोपी कहती है, मैं थैली बन सकती हूं, कुर्ता कहता है, मुङो बोरिया ही कर लो. जिसको भी देखो, उसकी आंखें कहती हैं बिकने को हूं तैयार, खुशी हो जो दे दो.. बीती शताब्दी के आखिरी दशक में इस वर्ग की दुनिया मुट्ठी में करने को आतुर हसरतों ने पुरानी बंदिशों से निजात पाकर ‘ग्लोबल विलेज’ से ताल मिलाया और खरीद-बिक्री के मणिकांचन संयोग के ऐसे प्रयोग की ओर बढ़ चलीं कि दीदावरों की आंखें फटी रह जायें!
याद कीजिए, 1991 में पीवी नरसिंह राव की सरकार में आज के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री खुलेपन का ढिंढोरा पीटते हुए राजीव गांधी की नयी आर्थिक नीतियों को तेजी से आगे बढ़ाने लगे तो देश में ऐसा मानने वाले भी थे ही कि उनका उद्देश्य सत्तावर्ग द्वारा आजादी की लड़ाई के दौरान अजिर्त मूल्यों की बिक्री से देश-विदेश में जमा किये गये काले धन को खुल कर कलाबाजियां दिखाने का अवसर देना है. तब इस वर्ग ने सारे विरोधों की अनसुनी करके अपनी वर्गीय एकता के बूते उन नीतियों को थोप दिया जो अब देश के रंध्र-रंध्र से उसके मान व ईमान दोनों का लहू टपकाने पर आमादा है!
सर्वे गुणा: कांचनमाश्रयंते की तो उन्होंने ऐसी पुनप्र्रतिष्ठा कर दी है कि ‘पैसा गुरु और सब चेला!’ जैसी पुरानी कहावत पूंजी ब्रrा और मुनाफा मोक्ष को युगसत्य बना कर खुशी मना रही है. बड़ी पूंजी व राज्य के गंठजोड़ के बीच किसी को राष्ट्रपिता की बात याद नहीं कि यह धरती जरूरतें तो सबकी पूरी कर सकती है पर किसी एक व्यक्ति की भी हवस के लिए कम है. क्या आश्चर्य कि आज नेताओं की हवस असीमित है. डॉक्टरों, फिल्मस्टारों, सेलेब्रिटियों व क्रिकेटरों जैसे दूसरे भगवान व जेंटिलमैन भी उसे काबू नहीं कर पा रहे. रंगे हाथ पकड़े जाते हैं तो उन्हें जगहंसाई का डर भी नहीं सताता, क्योंकि बीते वर्षो में जितने भी बड़े घपले या घोटाले हुए हैं, उनका दूसरा पक्ष कोई भी हो, पहला पक्ष बड़ी या बहुराष्ट्रीय कंपनियां ही हैं.
बाजारवादी अर्थतंत्र की चकाचौंध में कंपनियों ने समूचे सत्तावर्ग को ऐसी रतौंधी के हवाले कर दिया है कि वे उनके अंतर्विरोधों को भी आशा की निगाह से देखते और 52 प्रतिशत कुपोषित व 80 प्रतिशत बीपीएल जनता की ओर से निगाहें फेर कर आइपीएल और नहीं तो आगे बढ़कर नये इंडिया के जन्म का सोहर गाते हैं. तथाकथित देसी बुद्घिजीवी समझ ही नहीं पाते कि अब ये कंपनियां भारतमाता से बड़ी माता हो गयी हैं और राजनीति से नियंत्रित होने के बजाय राजनीति को नियंत्रित करती हैं. आइपीएल भी खेल या क्रिकेट का उपक्रम कम उनका, नेताओं व फिल्मस्टारों का साझा उपक्रम ज्यादा है जिसमें क्रिकेटर की हैसियत नीलाम व इस्तेमाल होने भर की बची है!
लोग इसे क्रिकेट की शर्म कह रहे हैं, लेकिन कोई भी इस शर्म को उन नीतियों की ओर नहीं मोड़ रहा जो इसकी जननी है. कपिलदेव इसे महज कुछ लड़कों की गलती मानते हैं. इसमें अंडरवर्ल्ड की भागीदारी व भूतपूर्व आयकर आयुक्त विश्वबंधु गुप्ता के इस खुलासे के बावजूद कि आइपीएल के जनक ललित मोदी ने अपने गुनाहों को छिपाने के बदले 400 करोड़ रुपयों की रिश्वत की पेशकश की थी! इस ‘गलती’ में सामने आयी लड़कियों की सप्लाई और सटोरियों व मुंबई पुलिस के बीच प्रॉफिट शेयरिंग को दूसरे खेलों में बढ़ते डोपिंग के मामलों व खेल संघों में राजनीतिक दखल तक ले जायें और सोचें कि भड़काऊ भाषण मामले में फंसे भाजपा नेता वरुण गांधी कैसे प्रतिद्वंद्वी सपा से मिलकर अपना बरी होना फिक्स करते हैं और कैसे सीबीआइ को कोयला घोटाले की जांच कर रहे अपने एसपी को बड़ी रिश्वत के दूसरे मामले में गिरफ्तार करना पड़ता है, तो संदेह नहीं रह जाता कि मामला व्यवस्था या कि देश के भविष्य की फिक्सिंग तक जा पहुंचा है!
पता नहीं हमें समझने में अभी कितना समय लगेगा कि देश के नैतिक व सामाजिक मूल्यों की इस खुल्लमखुल्ला नीलामी से निपटने का रास्ता एक बड़े नीतिगत व नैतिक परिवर्तन और बड़े सांस्कृतिक आंदोलन से गुजरता है. हम सवा अरब भारतीय मिल कर भी इस रास्ते नहीं जा सकते तो इतिहास हमें माफ करनेवाला नहीं.