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सूफीयत में समाधान

आखिर ऐसा क्यों कहा शायर ने कि ‘नफरतों का सफर बस कदम दो कदम, तुम भी थक जाओगे, हम भी थक जायेंगे’? दरअसल, क्रोध और घृणा की उपमा आग से दी जाती है. आग दूसरों को जलाया करती है. और बात यहीं खत्म नहीं होती. जैसे आग अपने को धारण करनेवाली लकड़ी को खाक कर […]

आखिर ऐसा क्यों कहा शायर ने कि ‘नफरतों का सफर बस कदम दो कदम, तुम भी थक जाओगे, हम भी थक जायेंगे’? दरअसल, क्रोध और घृणा की उपमा आग से दी जाती है. आग दूसरों को जलाया करती है. और बात यहीं खत्म नहीं होती. जैसे आग अपने को धारण करनेवाली लकड़ी को खाक कर देती है, वैसे ही क्रोध और घृणा भी अपने धारण करनेवाले को धीरे-धीरे समाप्त कर देते हैं.
ये भाव समय के एक छोटे अंतराल में तो बहुत ऊर्जा और गति देते हैं, लेकिन दीर्घकालिक तौर पर व्यक्ति, समाज या राष्ट्र के टिकाऊपन में घातक साबित होते हैं. विश्व सूफी फोरम ने इसी इतिहास-सम्मत विवेक का दामन थाम कर दुनिया भर की सरकारों से कहा है कि सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, विचाराधारागत यानी हर किस्म के आतंकवाद की समाप्ति के लिए सूफी धर्ममत के पुनरुत्थान के प्रयत्न करें.
जो लोग मानते हैं कि धर्म वास्तविक समस्याओं का काल्पनिक निदान प्रस्तुत करता है, उन्हें शायद यह बात ठीक नहीं लगे. वे अपने पक्ष में कार्ल मार्क्स की यह पंक्ति दोहरा सकते हैं कि ‘धर्म तो पीड़ित प्राणि की आह, आत्महीन परिस्थितियों की आत्मा, और जनता की अफीम है. जनता को सुख की वास्तविक दशा हासिल हो, इसके लिए धर्म से हासिल होनेवाले भ्रामक सुख की समाप्ति अनिवार्य है.’ लेकिन मार्क्स का यह तर्क प्रस्तुत करते हुए वे भूल जायेंगे कि शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद के वर्षों में पूरी दुनिया वैश्वीकृत बाजार के साथ उपभोक्ता-हितों के एक विशाल रणक्षेत्र में बदल चुकी है और इस रणक्षेत्र में सर्वाधिक ऊर्जावान-गतिवान गोलबंदी धर्म के नाम पर ही हुई है.
अगर एक तरफ धर्म-विशेष की मनमानी व्याख्या के आधार पर उठ खड़े हुए आतंकी संगठन पूरी दुनिया में एक ही तरह का शासन स्थापित करने के लिए गोला-बारूद में आग लगा कर मानव जाति को लाशों के ढेर में तब्दील कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ वैश्विक आतंकवाद से युद्ध के नाम पर कुछ ताकतवर देश कई मुल्कों से उनकी स्वायत्तता छीनने के लिए हथियारबंद हैं.
एक-दूसरे को नफरत की आग से जला देने के आवेश और आवेग से भरे समय में आज बड़ी तलाश है एक ऐसे विचार की, जो फिर से सिखाये कि क्षमा-भाव का ही नाम मनुष्यता है और मनुष्य जाति समेत पूरी अंतर्ग्रहीय जीवन की रक्षा ही मनुष्य का धर्म है.
निस्संदेह प्रेम को अपनी पीठिका बनानेवाले सूफीयत में ये गुण हैं और सूफीयत के उत्थान में योगदान देकर दुनिया के राष्ट्र असल में मनुष्य की रक्षा में ही योगदान दे रहे होंगे.

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