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राजनीति में ताने, उलाहने
ताने और उलाहने हमारी सांस्कृतिक विरासत के हिस्से हैं. लोग भूले नहीं होंगे शादियों में मारे गये ताने, उलाहने जो देर तक गुदगुदाये होंगेे़ सास और जेठानियों के एकािधकार वाले ताने-उलाहने जब राजनीति में घुसपैठ कर गये तो नतीजा यह हुआ कि तू-तू, मैं-मैं की विरासत राजनीति का अचूक अस्त्र बन गयी़ देशद्रोह की बात […]
ताने और उलाहने हमारी सांस्कृतिक विरासत के हिस्से हैं. लोग भूले नहीं होंगे शादियों में मारे गये ताने, उलाहने जो देर तक गुदगुदाये होंगेे़ सास और जेठानियों के एकािधकार वाले ताने-उलाहने जब राजनीति में घुसपैठ कर गये तो नतीजा यह हुआ कि तू-तू, मैं-मैं की विरासत राजनीति का अचूक अस्त्र बन गयी़
देशद्रोह की बात पर ‘इमर्जेंसी’ का याद आना, वरिष्ठों के सम्मान के सवाल पर अध्यादेश का पलटवार होना और ‘माल्या’ के बचाव में ‘क्वात्रेच्चि’ का खड़ा होना़ कई बार सीमाएं संवैधानिक मंदिरों की ड्योढ़ी लांघ कर खानदान की चौखट तक पंहुच जाती है़ जब तर्कों का अकाल हो तो कुतर्कों की बरसात होती है़
क्या तानों-उलाहनों की बौछारों से ‘रामराज्य’ की आस में बैठी जनता का भूखा पेट भर पायेगा? आंकड़ों और बयानों के गड़े मुर्दे उछालने से व्यवस्था सुधर जायेगी? एक दूजे को कलंकित कर खुद को पवित्र साबित करना लोकतंत्र का मजाक ही तो है़ ऐसा न हो िक इन सबके बीच देश बहुत पीछे छूट जाये़
एमके मिश्रा, रातू, रांची
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