आलोक पुराणिक
अर्थशास्त्री
बजट में खेती पर बहुतै कुछ है. खेती की जम कर खेती हुई है. कई उद्योगपति मुनाफे की खेती के लिए सरकार पर निर्भर नहीं रहते, खुद ही कर मारते हैं और फसल बाहर एक्सपोर्ट कर देते हैं, इंडियावालों के लिए सिर्फ भूसा छोड़ते हैं, जो ऐसे उद्योगपतियों को लोन देनेवाले बैंकरों के दिमाग में पहले से भरा होता है.
बजट ने बताया है कि सरकारी बैंकों को 25,000 करोड़ रुपये की पूंजी दी जायेगी. एक बड़े उद्योगपति अकेले ही 8,000 करोड़ डुबो चुके हैं. यानी सरकार जितना इंतजाम कई सारे बैंकों के लिए करेगी, उतना तो तीन बड़े उद्योगपति ही मिल कर डुबो सकते हैं! बड़े सामर्थ्यवान हैं हमारे कई उद्योगपति. खेती, किसानों को अभी उतना सामर्थ्यवान होना है.
अब बजट के बाद खेती फैशन में है. एक टीवी चैनल का एंकर तो खटिया-हुक्का लेकर स्टूडियो में बैठ गया, किसान लुक में. किसान लुक इस मुल्क में विकट ‘कनफ्यूजन’ का विषय है.
किसान दिखता कैसा है, इसे लेकर आम राय नहीं है. बड़े उद्योगपति से लेकर बड़े नेता-अभिनेता तक, ज्यादातर बड़ा आदमी किसान भी है, क्योंकि उसके पास एक या एक से ज्यादा फार्महाउस हैं. किसान बड़े आदमी भी होते हैं साहब. एक जमाने में हिंदी फिल्मों में किसान दिलीप कुमार होते थे. फिर किसान फिल्मों से गायब हो गया. फिल्मों में हीरो एनआरआइ होने लगे.
खैर, अब खेती फिर लौटी है डिबेट में. टीवी पर किसान-किसान हो रहा है. मुझे डर है कि टीवीवाले यदि अपनी पर आ गये, तो किसान का ऐसा हाल कर देंगे कि किसान अपनी सूरत तक नहीं पहचान पायेगा. सनसनी से लेकर वारदात तक में किसान-किसान मचने लगेगा.
सच्ची में किसान कहां पहुंचेगा, यह तो बाद में पता चलेगा, पर किसान ज्यादा पॉपुलर हो गया, तो न्यूज से कूद कर टीवी सीरियलों तक में आ जायेगा.
बजट आने के बाद एक टीवी एंकर ने एक किसान से खास बातचीत की. कुछ यूं रही बात-टीवी एंकर उर्फ टीए- जी किसान जी, बजट ने आपके लिए बहुत कुछ कर दिया.
किसान- जी बजट दिल्ली में कर देता है, दिल्ली के किसान की मौज आ जाती है. हम तो दिल्ली से बहुत दूर हैं.
टीए- कमाल करते हो, तुम्हारी बैलगाड़ी, खेत-खलिहान इतने कूल लगते हैं, शहरी बच्चों को टिकट लगा कर दिखाओ. हमारे पीएम भी कहते हैं कि टूरिज्म से कमाओ.
किसान- मालिक, हम किसान हैं, आप टूरिज्म की बात कर रहे हैं. कोई एंकर किसान नहीं है क्या आपके चैनल में, उससे बात कराइए.
टीए-हमारे चैनल में सबसे बड़ा किसान एक्सपर्ट मैं ही हूं, क्योंकि मैं अब तक 5,000 फार्महाउस पार्टियों में जा चुका हूं. सुनो, आलू के चिप्स चार सौ रुपये किलो बिकते हैं, तुम दस रुपये किलोवाला आलू उगाने में ही टाइम वेस्ट क्यों करते हो? आलू-चिप्स उगाओ.
किसान- आलू के चिप्स फैक्ट्री में बनते हैं, हम किसान हैं, फैक्ट्री नहीं चलाते. फैक्ट्री के लिए लोन चाहिए होता है, लोन लेने में हम घबरा जाते हैं. फैक्ट्रीवाले नहीं घबराते, उनसे बैंक घबराते हैं. बैंक लोन उन्हीं को देते हैं, जिनसे वे घबराते हैं. हम तो अपने बच्चों से घबराये घूमते हैं कि कहीं 400 रुपयेवाले आलू के चिप्स ना मांग बैठें.
टीए- तुम डरपोक हो, कुछ हजार के लिए सुसाइड तक करने की सोचते हो, अरबों गड़प करनेवाले उद्योगपति बिल्कुल नहीं डरते.
किसान- जी, तो क्या हम मानें कि हमारी प्रॉबलम का सोल्यूशन यही है कि हम भी अरबों हड़पनेवाले उद्योगपति की तरह बन जायेंएंकर पगड़ी लगा कर अगली फार्महाउस पार्टी में जा चुका था.