बंदे के मोहल्ले में एक से एक बढ़ कर हैं. इन्हीं में से एक हैं छिद्दू बाबू. किसी शब्द या मुद्दे को एक बार पकड़ लें, तो छिद्रान्वेषण करके ही मानते हैं. बंदे को तो देखते ही छिद्दू बाबू बेताल की तरह चिपक जाते हैं. बेताल को तो एक बार समझा-बुझा कर विदा भी किया जा सकता है, मगर छिद्दू बाबू को नहीं.
अभी कल ही की बात है. बंदा स्कूटी पर किक पर किक मार रहा था. लेकिन, बिना गियरवाली स्कूटी स्टार्ट नहीं हो पायी, न सेल्फ से और न किक से. चोक भी काम न आया. पसीना-पसीना हो गया बंदा. कड़ी सरदी में भी गरमी का अहसास. पत्नी बोली- 25 साल से चिपकाये घूम रहे हो. इसके पुर्जे भी नहीं मिलते. कित्ती बार बोला कि बदल दो.
बंदा झल्ला गया- शादी हुए भी तो इत्ते साल हो गये.
यह सुनते ही पत्नी चुप्पे से सरक गयी.
इधर बंदा स्कूटी से कुश्ती लड़ रहा था और उधर दूर खड़े छिद्दू बाबू यह नजारा देखते हुए हंस रहे थे. बंदे ने पीठ कर ली. न होगा बांस, न बजेगी बांसुरी. मगर छिद्दू बाबू ठहरे चीर-फाड़ वाले डॉक्टर. ही-ही करते हुए बंदे से चिपक ही गये- मैंने इसीलिए स्कूटी नहीं खरीदी.
बंदे ने सर पकड़ लिया. अब ये घंटो चटेंगे. फेविकोल तो फिर छूट जाये, मगर इनसे पिंड छुड़ाना नामुमकिन. अब इनकी बे-पैर की जिज्ञासाएं प्रारंभ होंगी. इन्हें भगाने का तरीका कई भुक्तभोगी बंदे को बता चुके हैं- एक कंटाप रसीद दो. लेकिन, बंदा ऐसा नहीं करेगा. संस्कारों से मजबूर है. लेकिन असली बात यह है कि साहस ही नहीं. दूसरा और सबसे कारगर उपाय है, छिद्दू बाबू की बुलडोजर पत्नी. बंदे ने आशा भरी निगाह से छिद्दू बाबू के घर की ओर देखा. छिद्दू बाबू मकसद समझ गये, बोले- मायके गयी हैं.
यानी छिद्दू बाबू आजाद हैं. उन्होंने स्कूटी की बखिया उधेड़नी शुरू कर दी. ऐसे मौके पर वे बंदे की पत्नी को भी पीछे छोड़ देते हैं. अशुभ-अशुभ बातें. ऐसी चीज लेने से फायदा ही क्या, जो खराब हो जाये… हमारे चचिया ससुर भी खरीदे रहे, पांच साल बाद कबाड़ के भाव बिकी… ममिया ससुर तो इसे खूंटी पर टांगते-टांगते खुद ही खूंटी पर टंग गये… मौसिया ससुर भी ऐसी ही स्कूटी चला रहे कि ट्रक ने दबोच दिया… अमां अब रिटायर हो गये हो. पैदल चला-फिरा करो, नहीं तो हाथ-पैर शिथिल हो जायेंगे…
छिद्दू बाबू में बंदे की पत्नी की आत्मा पूर्ण रूप से विराज चुकी थी. बंदा बहरा महसूस करने लगा. इधर छिद्दू बाबू का टेप खत्म होने के बाद तीसरी बार ऑटोमैटिक रिवाइंड हुआ. ऐसी चीज लेने से… लेकिन हर मुर्गी का भाग्य निश्चित है. अचानक छिद्दू बाबू की बुलडोजर आ गयीं- अभी तक यहीं खड़े हो? घर के बर्तन और कपड़े वैसे ही पड़े हैं. जैसे तुम, वैसे ही फालतू तुम्हारे दोस्त… छिद्दू बाबू दुम दबा कर खिसक लिये. इधर बंदे की स्कूटी भी स्टार्ट हो गयी.
तीस साल हो गये हैं छिद्दू बाबू के ब्याह को. छत्तीस का आंकड़ा है दोनों के बीच. मगर सड़ी, दकियानूसी, स्टोनऐज और बाल की खाल निकालनेवाली सोच के साथ वे हमेशा एक तरफ खड़े दिखते हैं और उनके साथ बंदे की पत्नी भी.
वीर विनोद छाबड़ा
व्यंग्यकार
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