दुनिया को क्रांति का दर्शन देनेवाले कार्ल मार्क्स की प्रसिद्ध उक्तियों में एक यह है कि ‘दार्शनिकों ने अब तक दुनिया की सिर्फ व्याख्या की है, असल समस्या तो दुनिया को बदलने की है.’ यह बात तनिक पुरानी जान पड़े, पर भारतीय चिंतन-परंपरा के बहुलांश का भी यही निर्देश है कि विचार जब तक कर्म का हिस्सा न बने, उसकी कोई खास अहमियत नहीं है.
वह बिना बोये हुए बीज के समान है. जिस तरह पुराने समय में विचार और कर्म को एक करने का क्षेत्र धर्म था, आज राजनीति है. और मानो, इसी बात की तस्दीक करते हुए बहुप्रतिष्ठित पत्रिका ‘फॉरेन पॉलिसी’ ने इस साल के विश्व के 100 अग्रणी चिंतकों की सूची में आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल को भी शामिल किया है. भारतीय राजस्व सेवा की विशिष्ट नौकरी से इस्तीफा देकर पहले सूचना के अधिकार और फिर भ्रष्टाचार विरोधी जनांदोलन को सुनिश्चित शक्ल देने में अहम भूमिका निभानेवाले केजरीवाल ने निजी आचरण और सार्वजनिक व्यवहार के जरिये भारतीय राजनीति को एक नयी दिशा दी है. उन्होंने दिखाया है कि आदर्श और व्यवहार परस्पर विरोधी नहीं होते, बल्कि आदर्श को ठेठ व्यावहारिक रूप दिया जा सकता है.
पत्रिका की सूची में कुछ और भारतीय नाम भी हैं, जैसे महिला के अधिकारों के लिए सक्रिय कविता कृष्णन और उर्वशी बुटालिया. पत्रिका ने माना है कि इन महिलाओं के सोच और कर्म से दुनिया बेहतरी के लिए बदली है. अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संगठन के महासचिव के रूप में कविता कृष्णन और लेखिका, प्रकाशक व मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में उर्वशी बुटालिया ने देश में नारीवादी आंदोलन के स्वर को हमेशा नयी धार दी है. सूची में विविध पृष्ठभूमि वाले कुछ अन्य भारतीय नाम, जैसे संजय बासु (स्वास्थ्य का अधिकार), रोहित वांचू (एनजीओ) और आनंद ग्रोवर (एनआरआइ चिकित्सक) भी हैं, पर केजरीवाल को इन सबसे ऊपर रखा गया है. यह इसलिए भी सही लगता है, क्योंकि उन्होंने औपचारिक राजनीति का रास्ता चुना है. दिल्ली के चुनावी नतीजे के बाद का परिदृश्य संकेत करता है कि शुचिता, सेवा और सद्भाव की राजनीति एकबारगी सफल होने पर समस्त मानवीय क्रिया-व्यापारों के मानदंड ऊंचा कर देती है.