पटना के मगध महिला कॉलेज की छात्राएं अपने कॉलेज के पुराने रास्ते को बंद करने के खिलाफ पिछले चार दिनों से आंदोलन पर हैं. कॉलेज के ठीक बगल में भव्य कन्वेंशन सेंटर बनने वाला है, जिसके लिए कॉलेज के पुराने रास्ते को बंद कर नया रास्ता बनाया जाना है. छात्राओं का कहना है कि उनके कॉलेज के वर्तमान स्वरूप से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाये.
गांधी मैदान से सटे इलाके में राज्य सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर के जिस कन्वेंशन सेंटर का निर्माण कराने वाली है, उसकी परियोजना करीब तीन साल पहले तैयार हुई थी. यहां ज्ञान भवन और ऑडिटोरियम भी बनने वाला है. इसके निर्माण के लिए आसपास के सरकारी भवनों को खाली भी कराया गया है. छात्राओं का यह तर्क अपनी जगह सही है कि कन्वेंशन सेंटर बन जाने के बाद यहां भीड़-भाड़ बढ़ेगी, ट्रैफिक जाम होगा और अंतत: इसका असर कॉलेज की शैक्षणिक गतिविधियों पर पड़ेगा. लेकिन, सवाल इस बात का भी है कि क्या एक महत्वाकांक्षी परियोजना को अधर में छोड़ देना उचित होगा?
पटना में वैसे भी नागरिक सुविधाओं की कमी है. यदि कन्वेंशन सेंटर बनेगा, तो इससे पटना की गरिमा बढ़ेगी. अंतरराष्ट्रीय स्तर की गोष्ठी या सेमिनार होंगे. छात्राओं के आंदोलन के संदर्भ में जांच तो इस बात की होनी चाहिए कि क्या कन्वेंशन सेंटर की डीपीआर को स्वीकृति देने के पहले कॉलेज या पटना विश्वविद्यालय प्रशासन को विश्वास में लिया गया था? क्या कॉलेज की छात्राओं को इस बात की गारंटी दी गयी थी कि कॉलेज का जो नया रास्ता बनाया जा रहा है, वह उनके लिए सुविधाजनक और सुरक्षित होगा? दरअसल यह मामला सरकारी परियोजनाओं में नागरिकों की सहभागिता न होने का भी एक प्रमाण है.
छात्राएं पढ़ाई छोड़ कर आंदोलन पर उतरें और उधर, सरकार भी अड़ी रहे, तो कोई रास्ता नहीं निकलेगा. छात्राओं का आंदोलन कॉलेज कैंपस से निकल कर सड़क पर आने के साथ ही कई राजनीतिक दल भी समर्थन में सामने आ चुके हैं. ऐसे में आशंका इस बात की है कि कहीं यह आंदोलन दूसरी दिशा की ओर न भटक जाये. छात्राओं का आंदोलन आगे बढ़े और राजनीतिक रंग ले, इसके पहले कोई बीच का रास्ता निकालने की जरूरत है. इसके लिए प्रबुद्ध नागरिकों को भी आगे आना होगा.