दूध एवं दूसरे खाद्य पदार्थो में मिलावट का अनैतिक कारोबार देश के करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य लिए एक गंभीर खतरा बन चुका है. हालत यह है कि दूध में मिलावट का धंधा करनेवाले डिटर्जेट, यूरिया, कॉस्टिक सोडा और व्हाइट पेंट के घोल को भी दूध के नाम पर बेचने से गुरेज नहीं कर रहे. फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्डस एक्ट के तहत खाद्य-सामग्री में हानिकारक मिलावट के दोषी के लिए अधिकतम छह महीने की सजा या एक हजार के जुर्माने का प्रावधान है.
इसे अपर्याप्त ही कहा जा सकता है. दो साल पहले एक सर्वेक्षण में दूध के 70 फीसदी नमूनों के मिलावटी होने की बात सामने आयी थी. फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्डस अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआइ) ने अपने एक सर्वेक्षण में निष्कर्ष निकाला था कि बिहार, छत्तीसगढ़, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल, झारखंड आदि राज्यों में यह समस्या खतरनाक रूप धारण कर चुकी है. इस सर्वेक्षण के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गयी थी. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों से मिलावटी दूध के धंधे के दोषियों के लिए आजीवन कारावास की कठोर सजा का प्रावधान करने को कहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्यों को उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओड़िशा का अनुसरण करना चाहिए, जहां दूध में सिथेंटिक सामग्री की मिलावट के दोषियों के लिए आजीवन कारावास की सजा तय की गयी है. सुप्रीम कोर्ट का निर्देश सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है, लेकिन सिर्फ सख्त कानून से ही इस समस्या का समाधान नहीं है.
एफएसएसएआइ के सर्वेक्षण में दूध में मिलावट की एक बड़ी वजह उसके रख-रखाव और वितरण में बरती जानीवाली असावधानी को बताया गया था. यह एक तथ्य है कि दूध के सबसे बड़े उत्पादक देशों में शामिल होने के बावजूद भारत के कई क्षेत्रों में दूध की मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन की स्थिति है. दूध की मिलावट को रोकने की दिशा में खाद्य पदार्थ परीक्षण प्रयोगशालाएं काफी मददगार साबित हो सकती हैं, लेकिन हमारे देश में ऐसी सुविधा काफी कम जगह उपलब्ध है. मिलावटी दूध के कारोबार पर लगाम कसने के लिए कानून बनाने के साथ ही इन मोरचों पर भी मुस्तैदी दिखानी होगी.