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माकपा के लिए मंथन का समय

कृपाशंकर चौबे एसोसिएट प्रोफेसर, एमजीएएचवी, कोलकाता माकपा 37 वर्षों के बाद पश्चिम बंगाल में अपना पूर्ण अधिवेशन आयोजित करने जा रही है. पार्टी का अंतिम पूर्ण अधिवेशन 1978 में बंगाल के सलकिया (हावड़ा) में हुआ था. इस महीने की 27 से 31 तारीख तक कोलकाता में आयोजित होने जा रहे पूर्ण अधिवेशन में इसका पता […]

कृपाशंकर चौबे
एसोसिएट प्रोफेसर, एमजीएएचवी, कोलकाता
माकपा 37 वर्षों के बाद पश्चिम बंगाल में अपना पूर्ण अधिवेशन आयोजित करने जा रही है. पार्टी का अंतिम पूर्ण अधिवेशन 1978 में बंगाल के सलकिया (हावड़ा) में हुआ था. इस महीने की 27 से 31 तारीख तक कोलकाता में आयोजित होने जा रहे पूर्ण अधिवेशन में इसका पता चलेगा कि क्या सचमुच माकपा अपनी सांगठनिक क्षमता का सम्यक आकलन करने को तत्पर है?
पांच दिन के मंथन की सार्थकता इस पर निर्भर करेगी कि पार्टी को मजबूत करने की कैसी रणनीति तैयार की जाती है. पूर्ण अधिवेशन में पार्टी संगठन, उसकी कमजोरियों और उसमें नयी जान डालने से संबंधित एक रिपोर्ट पर चर्चा की जानी है और एक विस्तृत प्रस्ताव पारित किया जाना है, जो आनेवाले दिनों में पूरे देश में माकपा की गतिविधियां तय करेगा. राष्ट्रीय स्तर पर माकपा को मजबूत करने की दिशा में पहले से ही प्रयास जारी हैं.
माकपा और भाकपा विलय के लिए अग्रसर हैं और वह राष्ट्रीय राजनीतिक दृश्यपट पर एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है. भाकपा में संशोधनवाद पर जो बहस चली थी और उसमें जो सैद्धांतिक मतभेद उभरे थे, उसी की परिणति 1964 में भाकपा के विभाजन के रूप में हुई थी. भाकपा से निकल कर माकपा के गठन की घोषणा करते हुए तब माकपा ने भाकपा को संशोधनवादी कहा था.
माकपा के गठन का ऐलान करते हुए मुजफ्फर अहमद ने 1964 में कलकत्ता कांग्रेस में कहा था, ¹‘आइए हम सच्ची कम्युनिस्ट पार्टी खड़ी करने की शपथ लें.’ क्या उस शपथ पर पार्टी खरी उतरी, इस पर अधिवेशन में माकपा को मंथन करना चाहिए.
माकपा व भाकपा में विलय से माकपा की ताकत अवश्य बढ़ेगी, किंतु वह विलय तभी सार्थक हो सकेगा, जब वैचारिक मतभेदों को कमतर किया जाये. केरल माकपा में राज्य सचिव पिनरई विजयन और पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्चुतानंदन के बीच मतभेद किसी से छिपे नहीं हैं.
मतभेदों के कारण ही नृपेन चक्रवर्ती, सैफुद्दीन चौधरी से लेकर सोमनाथ चटर्जी जैसे कद्दावर नेताओं को माकपा से बहिष्कृत किया गया था. माकपा ने जब यूपीए सरकार से समर्थन वापस लिया, तो वह चाहती थी कि सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दें. सोमनाथ ने पार्टी की बात नहीं मानी, तो उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया.
सोमनाथ का तर्क भी मजबूत था कि लोकसभा अध्यक्ष किसी दल का नहीं होता, इसलिए वे पद पर बने रहेंगे. इसी तरह चंडीगढ़ पार्टी कांग्रेस में सैफुद्दीन चौधरी ने कहा था कि माकपा की दुश्मन नंबर एक भाजपा है और नंबर दो कांग्रेस. उस बयान पर सैफुद्दीन भी दल बाहर कर दिये गये थे. माकपा से बहिष्कृत नेता के रूप में ही सैफुद्दीन ने अंतिम सांस ली. विडंबना देखिए कि बाद में पूरी माकपा सैफुद्दीन की लाइन पर ही चल पड़ी.
1996 में पार्टी में मतभेदों के कारण ही ज्योति बसु प्रधानमंत्री नहीं बन पाये थे. तब माकपा की केंद्रीय कमेटी ने बहुमत से संयुक्त मोर्चा सरकार में शामिल नहीं होने का फैसला कर बसु को प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया था. पार्टी के इस फैसले को बसु ने ऐतिहासिक भूल कहा था.
केंद्र में जनता पार्टी के समर्थन के मुद्दे, सत्तर के दशक में संघर्ष की रणनीति के मसले या 1978 में सलकिया अधिवेशन में पार्टी को जनविप्लवी के संगठन के रूप में खड़ा करने के सवाल पर भी माकपा में मतभेद प्रकट हुए थे. बंगाल में बुद्धदेव भट्टाचार्य के शासनकाल में अपनायी गयी औद्योगिक नीति पर भी पार्टी में गहरे मतभेद उभरे थे.
माकपा में कट्टरपंथी समूह तथा उदारवादी गुट के बीच जो वैचारिक और सांगठनिक मतभेद हैं, उन्हें दूर कर एकजुटता दिखाना पार्टी की प्राथमिकता होनी चाहिए. कट्टरपंथी गुट को न वैचारिक रूढ़िवाद पर जोर देना चाहिए, न उदारवादी गुट को संशोधनवाद पर. मतभेद दूर करना पार्टी की मजबूती के लिए जरूरी है.
पार्टी को मजबूत करने के समांतर धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ माकपा व दूसरे वाम दलों को कदमताल करना होगा, तभी वे प्रभावी तरीके से सांप्रदायिक एजेंडे, नवउदारवादी नीतियों और लोकतांत्रिक स्तंभों को कमजोर करने के कदमों से संघर्ष कर पायेंगे.
इस बार माकपा का पूर्ण अधिवेशन कोलकाता में आयोजित करने का एक मकसद बंगाल में खोई जमीन वापस पाने की भी है. इसी कोशिश के तहत माकपा ने नवंबर 2015 के दूसरे पखवाड़े में बंगाल के कोने-कोने में अपने जत्थे निकाले. वैसे माकपा ने जत्थे देशभर में निकाले.
पार्टी ने बढ़ती सांप्रदायिक असहिष्णुता और बंगाल सरकार के कुशासन के खिलाफ दिसंबर के पहले हफ्ते बंगालभर में सभाएं और विरोध प्रदर्शन का कार्यक्रम शुरू किया है. इनका समापन 27 दिसंबर, 2015 को कोलकाता के ब्रिगेड मैदान में एक बड़ी रैली के साथ होगा और रैली के बाद पार्टी का पूर्ण अधिवेशन प्रारंभ हो जायेगा.

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