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शहीदों के परिजनों को गोद ले सरकार

झारखंड के निवासियों को राज्य के गौरव परमवीर अल्बर्ट एक्का पर पूरा गर्व है. उनकी 44वीं शहादत दिवस पर उनके परिवार की दुर्दशा से सरकार को रूबरू होने का मौका मिला. इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार ने शहीद के परिजनों से जैसा वादा किया, उस पर वह खरी उतरी है. हालांकि, सरकार ने […]

झारखंड के निवासियों को राज्य के गौरव परमवीर अल्बर्ट एक्का पर पूरा गर्व है. उनकी 44वीं शहादत दिवस पर उनके परिवार की दुर्दशा से सरकार को रूबरू होने का मौका मिला. इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार ने शहीद के परिजनों से जैसा वादा किया, उस पर वह खरी उतरी है. हालांकि, सरकार ने हरसंभव शहीद के परिवार की दुर्दशा को समझने की कोशिश की है, पर हड़बड़ी में थोड़ी गड़बड़ी होने जैसा प्रतीत होता है.

परमवीर की पत्नी व पुत्र ने मिट्टी की प्रामाणिकता पर ऊंगली उठा कर सरकार की अपनी पीठ थपथपाने के मंसूबे पर पानी फेर दिया. गलती मात्र यहीं नही हुई, झारखंड के इस एकमात्र परमवीर के पवित्र मिट्टी से भरे कलश को तिरंगे का आवरण दिये बिना आनन-फानन में उनके पैतृक गांव पहुंचा कर कर्तव्य की इतिश्री करने से सरकार की यह मंशा उजागर हुई कि किस प्रकार इस महानायक की अब तक उपेक्षा की जा रही है.

झारखंड के ही एक और शहीद हैं कर्नल संकल्प कुमार. उनके प्रति झारखंड सरकार की दरियादिली झारखंड के निवासियों को हैरान करनेवाली हो सकती है. उनकी पत्नी को अनुकंपा पर लेक्चरर की नौकरी, राजधानी के सबसे पाॅश इलाके में करोड़ों की जमीन, बंगला सहित कई विशेष सुविधाओं से उपकृत किया गया है. दूसरी ओर, अल्बर्ट एक्का के खपड़ैल मकान में रह रहे परिवार को जान-बूझ कर इस कदर उपकृत होने से शायद इस कारण वंचित रखा गया है. परमवीर एक्का के प्रति इस कदर की बेरुखी देश के अन्य किसी राज्य में देखी जा सकती है? क्या शहीदों का उपकार जाति, धर्म व जन्मस्थान के हिसाब से तय किया जाना चाहिए? सरकार शहीदों का सम्मान करने के लिए बड़े-बड़े आयोजन करने के बजाय यदि सरकार उस परिवार को ही गोद ले ले, तो काफी हद तक उनकी समस्याएं दूर हो सकती हैं.

महादेव महतो, तालगड़िया

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