बात उन दिनों की है जब सूचना के साधन इतने विकसित नहीं थे. तब लोगों को किसी भी जानकारी के लिए समाचार पत्र और पत्रिकाओं पर निर्भर रहना पड़ता था. निर्भरता भी ऐसी कि लोग बासी खबरें भी बड़े चाव से पढ़ते थे. उन दिनों हिंदी में दिल्ली से प्रकाशित पत्रिका ‘क्रिकेट सम्राट’ हुआ करती थी, जो किशोरों और युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय थी. उसी के एक अंक में सचिन और कांबली की विश्व रिकॉर्ड साझेदारी से संबंधित फोटो व छोटा सा समाचार देखने को मिला था. यह साङोदारी स्कूली शेफील्ड ट्रॉफी के मैच की थी. यही हम हिंदीभाषी लोगों का सचिन से प्रथम परिचय था.
इसके कुछ समय बाद मुंबई की रणजी टीम में एक किशोरवय खिलाड़ी के रूप में सचिन के चयन से संबंधित दो-तीन पंक्ति की खबरें हिंदी अखबारों में आयीं, जिस पर शायद ही लोगों का ध्यान गया होगा. सचिन पर दुनिया ने तब गौर किया जब 1989 में भारत-पाकिस्तान का मैच हुआ. यह वह दौर था जब हर भारतीय घरों में टीवी अपनी जगह बना रहा था. तब लोगों ने देखा कि कैसे एक बच्च-सा दिखनेवाला खिलाड़ी पाकिस्तान के तूफानी गेंदबाजों की तिकड़ी इमरान, वसीम और वकार युनूस की गेंदों को सहजता से खेलता जा रहा था. तभी वकार युनूस की एक गेंद अचानक उठी और वह घायल हो गया.
देखनेवालों की आह निकल आयी. इसके बाद अब्दुल कादिर की गेंदों पर लगातार तीन छक्के जड़ कर वह लड़का हीरो बन गया. इसके बाद के 24 सालों में तो सचिन ने रिकॉर्डो की झड़ी लगा दी. उनके आगे क्रिकेट की महानतम हस्तियों की चमक मद्धिम पड़ने लगी. इसके बावजूद उन्हें अहं का भाव छू तक नहीं पाया. भारत का यह रत्न कई पीढ़ियों का प्रेरणा- स्नेत बना रहेगा. आनंद सिंह मुंडा, रामगढ़