लोकसभा के चुनाव के बाद बहुप्रतीक्षित बिहार चुनाव भी आखिरकार समाप्त हो गया. बहुप्रतीक्षित इसलिए क्योंकि, इस चुनाव को देश में भविष्य की राजनीतिक दिशा तय करनेवाला माना जा रहा था. लोकसभा चुनाव के बाद अन्य चार राज्यों में हुए चुनावों में एनडीए को मिली जीत के बाद यह माना जा रहा था कि मोदी लहर के कारण वह जीत रहा है.
इसलिए दिल्ली चुनाव के बाद बिहार का चुनाव कुछ अधिक ही प्रतीक्षित हो चला था. इस चुनाव में किसी का राजनीतिक भविष्य तय होना था, तो किसी के सुपुत्रों का. इसमें कुछ नेताओं के बेटों को छोड़ कर ज्यादातर पहुंचे हुए राजनेताओं के बेटों का भविष्य तो दावं पर लग गया.
राजनीतिक भविष्य सिर्फ नेताओं के लाडलों का ही दावं पर नहीं लगा, बल्कि एनडीए के कुछ नेताओं का भी भविष्य खतरे में दिखायी दे रहा है. कुछ नेता एसिड डेस्ट में फेल हो गये, तो किसी की डीएनए जांच यथावत रही. डीएनए में तो कहीं खोट नजर नहीं आयी, अलबत्ता लोग एसिड टेस्ट में जरूर फेल हो गये.
इतना ही नहीं, इस चुनाव में नेताओं की वाकपटुता की भी परीक्षा हो गयी. जनता ने यह दिखा दिया कि सिर्फ राजनैतिक जुमले से ही काम नहीं चलेगा. यहां तो लोगों को पेट भरने के लिए रोटी और रहने के लिए मजबूत राजनीतिक छत चाहिए. यहां जातिगत राजनीति का अब कोई भविष्य नहीं रहा.
सबसे बड़ी बात तो यह रही कि राजनीतिक पंडितों और विशेषज्ञों के पूर्वानुमान की परीक्षा का परिणाम आने का भी लोगों को इंतजार था और इंतजार था कई ऐसे भविष्यवक्ताओं का, जो किसी खास दल की जीत का भविष्य बांच रहे थे. लोगों को उन राजनेताओं के दावों का भी इंतजार था, जो जीत का दम-खम ठोंक रहे थे. लीजिए, अब इंतजार खत्म हो गया और बिहार के मतदाताओं ने अपना दम दिखा दिया.
-फैज आलम, मनोहरपुर