।। शैलेश कुमार।।
(प्रभात खबर, पटना)
हम कौन थे, क्या हो गये, और क्या होंगे अभी? आओ विचारें आज मिल, ये समस्याएं सभी. आज जब हमारी हमारी संस्कृति, राष्ट्रीयता और जन-कल्याण की उदात्त भावना क्षुद्र और निकृष्ट स्वार्थ के अंधकूप में समाहित हो रहे हैं. प्रजातंत्र, एकता और अखंडता शब्द देश के परिप्रेक्ष्य में निर्जीव प्रतीत हो रहे हैं, तो ऐसे समय में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियां याद आती हैं, जो उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों के आधार पर लिखी होंगी, लेकिन जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बेहद सटीक प्रतीत होती हैं.
कुंठा, निराशा और नाउम्मीदी का अंधेरा जब हमें धीरे-धीरे अपने आगोश में ले रहा है और हमारी सोचने-विचारने की ताकत एकदम शून्य हो चली है, तो ऐसे समय में लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की बातें करना क्या अर्थ रखता है, यह सचमुच एक विचारणीय प्रश्न है. देश के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होनेवाले हैं. अगले साल लोकसभा चुनाव भी होंगे. इसे ले कर राजनीतिक गलियारों का तापमान इस कदर बढ़ गया है कि शायद इस जाड़े में नेताओं का काम बिना स्वेटर और जैकेट के चल जाये. शब्दों के बाण तो ऐसे चल रहे हैं, जैसे कर्ण के कवच-कुंडल से निकलें हों. खत्म ही नहीं होते. शायद उसी कवच-कुंडल की खोज में राज्य के एक वरिष्ठ नेता कर्ण की धरती मुंगेर पहुंच गये. उन्हें लगा कि शायद इंद्र ने कर्ण से इसे लेने के बाद वहीं कहीं छिपा दिया हो.
कांग्रेस के एक युवा नेता को रियलिटी शो से ही आइडिया मिल गया और अपने पिता व दादी की तरह खुद की भी हत्या की आशंका जता कर उन्होंने मतदाताओं को इमोशनल ब्लैकमेल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इससे भी मन नहीं भरा, तो एक वर्ग विशेष का वोट लेने के चक्कर में उसके ही कुछ युवाओं के आइएसआइ के संपर्क में रहने की बात कह कर उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश दे दिया कि उस समुदाय के लोगों के साथ जब भी कुछ गलत होता है, तो वे आतंकियों की शरण में चले जाते हैं. देश के भावी प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल एक नेता के मुंह से ऐसा बयान सुन कर उन्हीं की पार्टी के मध्य प्रदेश के एक वरिष्ठ नेता को भी ईर्ष्याहोने लगी होगी, जो अपने बिना सिर-पैर के बयान के लिए खूब जाने जाते हैं.
उसी तरह से प्रदेश की राजनीति से बाहर निकल अब देश की बागडोर संभालने का सपना देख रहे एक वरिष्ठ नेता ने यहां तक कह डाला कि वे चौकीदार बनना चाहते हैं. अब तो राजनीतिशास्त्र के विद्यार्थी भी कन्फ्यूज हो गये होंगे कि चौकीदार बनने के लिए चुनाव कब से होने लगे. कुल मिला कर सभी राजनीतिक दलों ने ठान लिया है कि वोट के लिए उन्हें जितना गर्त में जाना हो, जायेंगे. तब भी यदि वोट न मिला, तो कम-से-कम गहराई में दबा सोने का भंडार तो हाथ लग ही जायेगा. ऐसे में बरबाद गुलिस्तां करने को, एक उल्लू ही काफी है. जहां हर डाल पे उल्लू बैठा हो, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा.