बिहार चुनाव और साहित्यकारों के विरोध प्रदर्शन से भी बड़ा मुद्दा हो गया है दाल की बढ़ती कीमत. मुद्दा बनना भी लाजिमी है, क्योंकि यह आम आदमी से जुड़ा हुआ मामला है.
आज भले ही हम दुनिया में डिजिटली और आर्थिक रूप से मजबूत होना चाहते हैं, लेकिन पैसा और इंटरनेट लोगों का पेट नहीं भर सकता. लोगों का पेट अनाज और दाल से ही भरता है. यदि देश के लोगों को इंटरनेट और लग्जरी कारों की सुविधा न मिले, तो काम चलेगा, लेकिन किसी को दो जून की रोटी और दाल नहीं मिलेगी, तो वह भूखे मर जायेगा.
कोई आदमी नंगे बदन रह कर भी काम चला लेगा, लेकिन कोई भूखा सोना पसंद नहीं करेगा. वह हर स्थिति में पेट भरने का जतन करेगा. अब यदि सरकार इतना कुछ होने के बाद भी दाल और खाद्यान्न की कीमतों को कम करने का जतन नहीं करती है, तो फिर और क्या करेगी? सरकार को इस दिशा मे कारगर कदम उठाने चाहिए.
-लोकेश सिंह, ई-मेल से