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चुनावी बिसात पर धूमिल जनाकांक्षाएं

भारत की आजादी के बाद देश में लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की गयी. इसका उद्देश्य सत्ता के केंद्र में देश की जनता को रखने का था, परंतु वर्तमान चुनावों में जिस प्रकार धनबल और बाहुबल हावी है, उससे प्रतीत होता है कि सत्ता रसूखदारों की जागीर है. भुखमरी और गरीबी से पीड़ित व्यक्ति कभी भी […]

भारत की आजादी के बाद देश में लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की गयी. इसका उद्देश्य सत्ता के केंद्र में देश की जनता को रखने का था, परंतु वर्तमान चुनावों में जिस प्रकार धनबल और बाहुबल हावी है, उससे प्रतीत होता है कि सत्ता रसूखदारों की जागीर है. भुखमरी और गरीबी से पीड़ित व्यक्ति कभी भी इस लोकतांत्रिक प्रणाली का हिस्सा नहीं बन पाया है.
विकास की धुंधली रोशनी इन गरीबों की झोपड़ी तक नही पहु्ंच पाती है. आमतौर पर बिहार और झारखंड में पिछड़े व नक्सल प्रभावित सैकड़ों इलाके होंगे, जहां मतदान का अधिकार लोगों को प्राप्त नहीं है.
रैलियों में प्रत्याशी जहर उगल कर सामाजिक वैमनस्यता फैला रहे हैं. देश की संसद के 543 सांसदों में से सौ से ज्यादा सांसदों पर गंभीर आरोप हैं. वहीं, सैकड़ों विधायक भी दागी हैं. गौर करें, तो ये दागी जनाकांक्षाओं को क्या पूरा कर सकेंगे?
-चंद्रशेखर कुमार, खलारी

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