झारखंड टेट (शिक्षक योग्यता परीक्षा) के बारे में शिक्षा मंत्री का बयान सुन कर काफी आशान्वित हुआ. पहली बार किसी मंत्री ने बिना किसी की परवाह किये झारखंड के लोगों के हित की बात कही. यही बात झारखंड के मंत्रियों को बहुत पहले ही रखनी चाहिए थी, लेकिन सब के सब सत्तालोलुपता के कारण झारखंड के हितों को छोड़ कर अपने हित साधने में लगे रहे. गौर करने पर पता चलेगा कि किसी भी आदिवासी नेता या मंत्री ने इस बात का पहले कभी विरोध नहीं किया, क्योंकि हकीकत सबको पता है. भोजपुरी और मगही को वास्तव में टेट परीक्षा में शामिल ही नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि ये यहां की क्षेत्रीय भाषाएं नहीं हैं.
बिहार टेट में यह स्पष्ट उल्लेख है कि अभ्यर्थी बिहार का निवासी है या नहीं. इसका मतलब यह हुआ कि आपके घर जाने में हमारे लिए पाबंदी है और आप हमारे घर में आने के लिए आजादी चाहते हैं. बाहरी व्यक्तियों के लिए बिहार में कोई मौका नहीं है. बिहार से भी झारखंड की कई भाषाओं को हटा दिया गया है. हम यह नहीं कहते कि भाषा के आधार पर विभाजन या भेदभाव किया जाये, लेकिन सभी राज्यों की अपनी-अपनी भाषा आधार है और इसको लागू करने में किसी को कोई एतराज नहीं होना चाहिए.
भोजपुरी एवं मगही का हम सम्मान करते हैं, लेकिन आपको झारखंड में नौकरी देने पर ही भाषा का सम्मान समङोंगे, यह कहां का तुक है? वैसे भी झारखंड आदिवासी बहुल राज्य है. यहां के अभ्यर्थी विकसित राज्यों की तुलना में कमजोर हो सकते हैं और उन्हें उनके साथ प्रतिस्पर्धा करने में परेशानी हो सकती है. इस बात को समझने के लिए शिक्षा मंत्री के जज्बे को सलाम!
मोतीलाल पान, राजनगर, सरायकेला-खरसावां