शिक्षा वह दीप है, जो किसी भी मनुष्य के जीवन को ज्ञान से रोशन कर समाज में समुचित स्थान दिलाती है. प्राचीन काल से ही देश की िशक्षा प्रणाली में अनेक संशोधन किये जा चुके हैं. आजादी के बाद से अब तक कई बार संशोधन किया जा चुका है. बदलते समय के अनुसार नियमों में बदलाव किया जाता है, लेकिन बच्चों की पीठ से पुस्तकों का बोझ कम नहीं हो रहा है.
हालांकि, इस बोझ को कम करने के लिए िवभागीय और सामािजक स्तर पर कई शोध भी किये जा रहे हैं, लेकिन अब तक इसका समाधान नहीं िनकल सका है. यह बात लोगों की समझ से परे है कि आखिर आज की िशक्षा प्रणाली एक छात्र को किस ओर ले जा रही है. क्या पीठ पर बोझ लादने के बाद भी उसे रोजगार के समुिचत अवसर उपलब्ध हो रहे हैं?
-आस्था मुकुल, रांची