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हिचक छोड़ अपना निवेश बढ़ाएं निजी क्षेत्र

राजीव रंजन झा संपादक, शेयरमंथन चीन के संकट को भारत के लिए अवसर में बदलने का मंत्र अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के उद्योगपतियों के सामने रख दिया है. एक पखवाड़े पहले जब चीन के संकट ने दुनियाभर के बाजारों में खलबली मचानी शुरू की थी, तो प्रधानमंत्री ने वित्त मंत्री और वरिष्ठ सरकारी […]

राजीव रंजन झा
संपादक, शेयरमंथन
चीन के संकट को भारत के लिए अवसर में बदलने का मंत्र अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के उद्योगपतियों के सामने रख दिया है. एक पखवाड़े पहले जब चीन के संकट ने दुनियाभर के बाजारों में खलबली मचानी शुरू की थी, तो प्रधानमंत्री ने वित्त मंत्री और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के सामने यह बात कही थी.
शायद इसी ठोस कार्यक्रम की तलाश में इस मंगलवार को प्रधानमंत्री ने देश के लगभग 40 दिग्गज उद्योगपतियों से मुलाकात की. मुकेश अंबानी, साइरस मिस्त्री, कुमार मंगलम बिड़ला, सुनील मित्तल, आनंद महिंद्रा समेत उद्योग जगत का शायद ही कोई प्रमुख नाम इस बैठक की सूची में शामिल न हो. आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन और नीति आयोग यानी के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया भी थे.
इस संभावित कार्यक्रम में बैंकिंग क्षेत्र की अहम भूमिका केवल आरबीआइ गवर्नर ही नहीं, बल्कि एसबीआइ की प्रमुख अरुंधती भट्टाचार्य समेत कई निजी बैंक प्रमुखों की उपस्थिति से भी दिखती है. साथ ही, वित्त मंत्रालय के अलावा जिन सरकारी विभागों के बड़े अधिकारी इसमें शामिल रहे, उनमें विद्युत मंत्रालय का नाम खास तौर पर लिया जा सकता है. यह संकट को अवसर में बदलने की रणनीति में बिजली क्षेत्र पर खास जोर रहने की ओर इशारा करता है.
इस महामंथन में सरकार की ओर से यह बात रखी गयी कि निजी क्षेत्र अपना निवेश नहीं बढ़ा रहा है. प्रधानमंत्री ने उद्योग जगत को ज्यादा जोखिम लेने की सलाह दी. खुद अपनी ओर से उन्होंने भरोसा दिलाया कि सरकारी खर्च को बढ़ाया जायेगा. जिस तरह उन्होंने वैश्विक संकट से बने मौके का लाभ उठाने की बात की है, उससे स्पष्ट है कि वे निजी क्षेत्र की ओर से आ रहे निवेश को लेकर कुछ निराश हैं.
वे जानते हैं कि यदि निजी क्षेत्र पूरे मन से आगे नहीं बढ़ा, तो संकट को अवसर में बदलने की बातें हवा-हवाई रह जायेगी.मोदी सरकार के एक साल पूरे होने के मौके पर अपने एक लेख में मैंने इसी पहलू की ओर इशारा किया था.
मई 2015 के उस लेख में मैंने लिखा था कि ‘खुद उद्योग जगत आगे बढ़ कर निवेश करने का हौसला नहीं जुटा रहा. अब उद्योग जगत चाहता है कि पहले सरकार खुद निवेश करके अर्थव्यवस्था की गाड़ी को तेज करे, और जब यह गाड़ी सरपट दौड़ने लगेगी, तो वह उस पर सवार हो जायेगा. ’
ऐसा नहीं लगता कि उद्योग जगत अधिक जोखिम लेकर निवेश बढ़ाने की प्रधानमंत्री की अपील पर बहुत ध्यान देनेवाला है. एक खबर के मुताबिक, उद्योग संगठन फिक्की की अध्यक्ष ज्योत्स्ना सूरी ने कहा है, ‘मैं नहीं जानती कि कितने लोग आगे बढ़ कर जोखिम उठायेंगे और निवेश करेंगे.’ उद्योग जगत की दो प्रमुख शिकायतें रही हैं- भ्रष्टाचार और स्वीकृतियों में विलंब.
इन दोनों मोर्चों पर मौजूदा सरकार पिछली सरकार से काफी बेहतर काम कर रही है और खास कर शीर्ष स्तर पर ऐसा दिख रहा है, यह बात खुद उद्योग जगत के लोग सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते रहे हैं. उसके बाद भी अगर उद्योग जगत निवेश करने को लेकर हिचक रहा है, तो जाहिर है िक सामान्य कारोबारी जोखिम भी नहीं लेने से बचना चाहता है.
उद्योग संगठनों ने तो पहले से मांग कर रखी है कि अर्थव्यवस्था में निवेश चक्र को तेज करने के लिए सरकार खुद परियोजनाओं पर खर्च बढ़ाये. यानी जब सरकारी पहल से निवेश चक्र तेज हो जाये और उद्योग जगत को पक्का भरोसा हो जाये कि अर्थव्यवस्था में उसके लिए अब लाभ के पूरे मौके मौजूद हैं, तभी वह आगे कदम बढ़ायेगा. उद्योग जगत और जाने-माने अर्थशास्त्री इस बात को मान रहे हैं कि भारत के सामने जो अवसर हैं, वे काफी बड़े हैं. लेकिन इन्हें भुनाने के लिए जो तैयारी होनी चाहिए, वह नजर नहीं आ रही है.
अगर सरकार और उद्योग जगत पहले आप पहले आप वाले अंदाज में ताकते रहेंगे, तो जाहिर है कि अवसरों की यह गाड़ी छूट जायेगी. भारतीय अर्थव्यवस्था अभी ऐसे मुकाम पर है, जहां इसके सामने कई सकारात्मक पहलू इसे मौजूदा अवसर का लाभ उठाने में सक्षम बनाते हैं.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल और अन्य तमाम कमोडिटी के भाव काफी नीचे आने का भारत को लाभ मिल रहा है. देश में महंगाई दर नियंत्रण में है. थोक महंगाई दर लगातार कई महीनों से ऋणात्मक है और खुदरा महंगाई दर भी 5 प्रतिशत के आसपास है. बेशक, कमजोर माॅनसून के चलते इस बार कृषि क्षेत्र पर दबाव बना है और ग्रामीण मांग में कमी के आसार हैं, फिर भी भारत की आर्थिक विकास दर इस साल 7 प्रतिशत के ऊपर ही रहने की उम्मीद है.
इन सकारात्मक बातों का फायदा उठाते हुए अगर एक-साथ सरकार भी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर खास जोर देते हुए सरकारी खर्च में वृद्धि करे और निजी क्षेत्र भी हौसला जुटा कर निवेश करे, तो चीन के संकट को भारत के अवसर में बदलने की रणनीति जरूर कारगर हो सकेगी. सरकार की ओर से मेक इन इंडिया की पहल ने एफडीआइ में पहले ही तेजी ला दी है.
उद्योग जगत की यह मांग जरूर सुनी जानी चाहिए कि महंगाई दर नियंत्रण में रहने के मद्देनजर अब आरबीआइ ब्याज दरों में एक ठीक-ठाक कमी करे. दरअसल पहले भी आरबीआइ ने जब महंगाई दर पर नियंत्रण पाने की नीति के मद्देनजर ब्याज दरें बढ़ायी थीं, तो यह एक निरर्थक कदम था. भारत में ऊंची ब्याज दरों से महंगाई काबू में नहीं आती है. इस समय महंगाई नियंत्रण में आयी है, तो उसके अपने वैश्किव और चक्रीय कारण हैं. लेकिन अब महंगाई दर काफी घट जाने और निकट भविष्य में इसके फिर से बढ़ने की आशंका नहीं होने के बाद आरबीआइ को ब्याज दरों में और कमी करनी ही चाहिए.
कुछ लोग तर्क दे रहे हैं कि वैश्विक संकट को अवसर में बदलने की कवायद निरर्थक है. लेकिन भारत के सामने तेज विकास के लिए जो सबसे बड़ी बाधा है, वही उसके लिए सबसे बड़ा अवसर भी है. यह अवसर है बुनियादी ढांचे के विकास का. भारतीय कंपनियों के लिए वैश्विक उत्पादन नेटवर्क का हिस्सा बनने में एक बड़ी अड़चन बुनियादी ढांचे का कमजोर होना है.
बुनियादी ढांचा, जैसे बिजली, बंदरगाह, रेलवे, सड़क आदि की परियोजनाओं को गति देने से न केवल यह अड़चन दूर होगी, बल्कि इन पर भारी खर्च से ही अर्थव्यवस्था को एक तेज रफ्तार मिल जायेगी. कमोडिटी भावों के नीचे होने से भारत के लिए सस्ते में अपने बुनियादी ढांचे का विकास कर लेने का यह एक स्वर्णिम अवसर है.

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