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अटपटे बयानों से बाज आयें देश के नेता

देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, किसान. वह भारत के निवासियों का अन्नदाता है. यदि किसानों ने अनाज का उत्पादन नहीं किया, तो लोगों के घर में चूल्हा जलना भी मुश्किल हो जायेगा. देश का किसान मंदिर में स्थापित मूर्तियों से कहीं ज्यादा पूज्य है. चूंकि उसकी मेहनत से ही इंसान की पेट की आग […]

देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, किसान. वह भारत के निवासियों का अन्नदाता है. यदि किसानों ने अनाज का उत्पादन नहीं किया, तो लोगों के घर में चूल्हा जलना भी मुश्किल हो जायेगा. देश का किसान मंदिर में स्थापित मूर्तियों से कहीं ज्यादा पूज्य है.
चूंकि उसकी मेहनत से ही इंसान की पेट की आग बुझती है इसलिए पिछले दिनों केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह के द्वारा किसानों की आत्महत्या के संबंध में दिया गया बयान बेहद निंदनीय ही नहीं, बल्कि पूरी तरह गलत व नाजायज भी है.
इस बीच सवाल यह भी पैदा होता है कि देश में नेता, अधिकारी, फिल्मी कलाकार, उद्योगपति व कारोबारी, सेना के अधिकारी व कर्मचारी आदि भी आत्महत्या करते हैं. क्या कृषि मंत्री इस बारे में अपना नजरिया जाहिर करेंगे? ऐसे सम्मानित पदों पर बैठे नेताओं को अटपटे बयानों से बाज आना चाहिए.
बैजनाथ प्रसाद महतो, हुरलुंग, बोकारो

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