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बच्चा गोद लेने की राह में बड़ी बाधाएं
शशिधर खान वरिष्ठ पत्रकार केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने अनाथ बच्चों को गोद लेने की कम होती प्रवृत्ति के साथ-साथ गोद लेने का काम करनेवाले गैर-सरकारी संगठनों की भरमार पर भी चिंता जतायी है. उन्होंने गोद लेनेवाले कानूनी प्रावधानों के पचड़े को भी इस रास्ते की अड़चन बताया है, क्योंकि कई […]
शशिधर खान
वरिष्ठ पत्रकार
केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने अनाथ बच्चों को गोद लेने की कम होती प्रवृत्ति के साथ-साथ गोद लेने का काम करनेवाले गैर-सरकारी संगठनों की भरमार पर भी चिंता जतायी है. उन्होंने गोद लेनेवाले कानूनी प्रावधानों के पचड़े को भी इस रास्ते की अड़चन बताया है, क्योंकि कई बेऔलाद दंपति अदालती झमेले में फंसने के डर से हिचकिचाते हैं.
साल 2000 में मेनका गांधी की ही पहल पर बने बाल न्याय, बच्चों की देखभाल और संरक्षण एक्ट में संशोधन करके उन्होंने संसद में पेश किया है. संशोधित बाल न्याय, बच्चों की देखभाल और संरक्षण एक्ट, 2015 को मेनका गांधी ने इस वर्ष मई में लोकसभा में पारित करा लिया. उन्होंने मंत्रालय की ओर से कुछ दिशा-निर्देश भी जारी किये हैं.
हंगामे के दौरान ही लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में मेनका गांधी ने बताया कि पिछले कुछ वर्षो से गोद लेने की प्रवृत्ति लगातार घटती जा रही है. उन्होंने सदन को यह भी बताया कि गोद लेने के नाम पर सरकारी पैसे का दुरुपयोग करनेवाले और बच्चों के हित में जीरो रिकॉर्ड वाले एनजीओ पर नकेल कसी गयी है.
सरकारी आंकड़े को मानें, तो देश में हर साल गायब होनेवाले बच्चों की संख्या लाख से ज्यादा है. अस्पतालों से उठाये गये बच्चों की संख्या ज्यादा है. वैसे ही बच्चों की जिंदगी अवैध तरीके से गोद लेने के मामले में फंसती है. पूर्वोत्तर इसका एक बड़ा अड्डा है. बचपन बचाओ आंदोलन के अध्यक्ष नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने गुवाहाटी जाकर एक एनजीओ कार्यक्रम में यह मामला उठाया है.
मेनका गांधी ने गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया सरल बनाने और अवैध शिशु व्यापार में शामिल तथा अनुदान के पैसे से अन्य व्यवसाय करनेवाली एजेंसियों पर डंडा चला कर सही काम किया है. उनका कहना है कि देश में समेकित बाल संरक्षण योजना के अंतर्गत केंद्रीय फंड पोषित 1,521 बाल गृह हैं और 320 विशेषज्ञ गोद एजेंसियां काम कर रही हैं. बाल गृहों में भी बच्चों के यौन शोषण की खबरें आती रहती हैं. बच्चे वहां से भाग कर व्यापारियों के हाथ लग जाते हैं.
मेनका गांधी ने संसद में कहा कि इस वर्ष फरवरी तक भारत में गोद लेने की दर 800 से 1000 सालाना थी. उन्होंने कहा कि हर साल 15,000 बच्चे गोद लिये जायें, जिसमें कमी होने पर खराब काम करनेवाली बची-खुची एजेंसियां भी बंद कर दी जायेंगी.
2010 में भारत में 5,693 बच्चे गोद लिये गये, पर यह आंकड़ा 2014 में घट कर 2,503 पर आ गया. गोद लेने में कानून से ज्यादा बड़ी बाधा है कोख- अर्थात कोखवाली रूढ़िवादी सोच. यह वैसी स्वाभाविक ममता से जुड़ी है, जो मां के मन में सिर्फ अपनी कोख से जन्मे बच्चे के प्रति पैदा होती है.
गरीब और निम्न आयवाले परिवारों में बच्चे भले भूख और बीमारी से मरें, लेकिन वे उन्हें दूसरे की गोद में देने को तैयार नहीं होते. ये गर्भपात करा देंगे, नवजात शिशु को कहीं कूड़े में छोड़ आयेंगे, लेकिन किसी दूसरे की गोद में नहीं देंगे. ठीक उसी तरह, गोद लेनेवाली मांओं के मन में बच्चे के प्रति स्वाभाविक स्नेह नहीं उमड़ पाता.
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