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आतंक की चुनौती

पंजाब के गुरदासपुर जिले में दीनानगर थाने पर आतंकी हमले के साथ आतंकवाद की चुनौती से जुड़े सवाल फिर सामने हैं. राज्य में इससे पूर्व आखिरी बड़ा आतंकी हमला 31 अगस्त, 1995 को हुआ था, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या हो गयी थी. सोमवार तड़के आतंकियों ने थाने पर हमला करने से पूर्व […]

पंजाब के गुरदासपुर जिले में दीनानगर थाने पर आतंकी हमले के साथ आतंकवाद की चुनौती से जुड़े सवाल फिर सामने हैं. राज्य में इससे पूर्व आखिरी बड़ा आतंकी हमला 31 अगस्त, 1995 को हुआ था, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या हो गयी थी. सोमवार तड़के आतंकियों ने थाने पर हमला करने से पूर्व एक ढाबे और एक यात्री बस पर फायरिंग की.
जम्मू-पठानकोट रेल लाइन पर शक्तिशाली बम भी मिले. दीनानगर भारत-पाक सीमा से सिर्फ 15 किमी और जम्मू-कश्मीर राज्य की सीमा से 25 किमी दूर है. इस बात के ठोस संकेत हैं कि आतंकी सीमा पार से आये थे.
पंजाब में 1980 व 90 के दशक के आतंकवाद के दौर के बाद शांति और स्थिरता का माहौल है, पर इस घटना ने आतंक के फिर से सिर उठाने की आशंका को आधार दिया है. एक दिन पहले ही पटियाला में पंजाबी विवि के एक कार्यक्रम में राज्य के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की उपस्थिति में खालिस्तान-समर्थक नारे लगे थे.
सर्वविदित है कि खालिस्तानी और कश्मीर के आतंकी गुटों को पाक का खुला समर्थन मिलता रहा है. बीते वर्षो में जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाएं कम जरूर हुई हैं, पर हिंसक गिरोह राज्य में अमन-चैन बिगाड़ने की फिराक में अक्सर लगे रहते हैं. लंबी तनातनी के बाद भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की रूस में हुई मुलाकात में दोनों देशों ने नियमित रूप से उच्चस्तरीय बैठकें करने का निर्णय लिया था, साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले वर्ष दक्षेस शिखर सम्मेलन में पाक जाने का निमंत्रण भी स्वीकार किया था.
उक्त बैठक से उम्मीद बंधी थी कि दोनों देश बातचीत के जरिये विवादित मसलों के समाधान की कोशिश करेंगे. लेकिन, बीते कुछ हफ्तों से सीमा पार से गोलाबारी की घटनाओं के बाद अब गुरदासपुर की वारदात के जरिये अमन-चैन की कोशिशों को फिर से पटरी से उतारने की कोशिश की गयी है. पाक सेना व सरकार में भी बड़ी संख्या में ऐसे तत्व हैं, जो भारत में अस्थिरता फैलाने के प्रयास में लगे रहते हैं. पाकिस्तान के ऐसे दोहरे चरित्र एवं रवैये के इतिहास को नजरअंदाज कर द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के प्रयास सफल नहीं हो सकते.
बातचीत के जरिये द्विपक्षीय संबंध बेहतर करने की भारत सरकार की पहलें ठीक हैं, लेकिन पाकिस्तान को यह संदेश भी जाना चाहिए कि उसकी ओर से बार-बार की जा रहीं नापाक हरकतें बर्दाश्त नहीं की जा सकती हैं. भारत में आतंक को पाक द्वारा शह देने के अकाट्य सबूत हैं. हमारी सरकार को उन सबूतों के आधार पर पड़ोसी देश पर दबाव बनाना चाहिए.
आतंक को शह देनेवाली ताकतों पर नकेल कसने के साथ-साथ देश में सुरक्षा-संबंधी तैयारियों में ढीलेपन को भी दुरुस्त करने की जरूरत है. गुरदासपुर हमला संकेत करता है कि पूर्व में मुंबई में हुए आतंकी हमले से पर्याप्त सबक नहीं लिया गया है.
मुंबई हमले से पहले ही इंटेलिजेंस के आला अधिकारियों ने सरकार को चेतावनी दी थी, लेकिन संबंधित विभागों ने उस पर गौर नहीं किया था. इस ताजा हमले के बारे में भी इंटेलिजेंस ने कुछ दिन पहले चेतावनी दे दी थी, फिर भी हमले को टाला नहीं जा सका. गुरदासपुर से सटी भारत-पाक सीमा पर बाड़ लगे हैं, जिस पर निरंतर चौकसी रहती है, बावजूद इसके आतंकी घुसपैठ में कामयाब हो गये.
थाने पर हमले से पूर्व उन्होंने कई अन्य वारदातें भी कीं, पर उन्हें रोका नहीं जा सका. हालांकि आतंकियों के थाने में घुसने के बाद पंजाब पुलिस के जवानों ने जांबाजी के साथ मुकाबला किया, जिसके लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए. लेकिन, आतंकी हमले की पुष्टि के बाद जब पुलिस की सहायता के लिए अर्धसैनिक बल और सेना के कमांडो भेजे गये, तब साझा ऑपरेशन चलाने को लेकर त्वरित तालमेल नहीं दिखा. आतंकियों को जिंदा पकड़ने और जान-माल के कम-से-कम नुकसान की कोशिशों के चलते भी मुठभेड़ घंटों खिंच गयी.
गौरतलब यह भी है कि सेना के उत्तरी कमान के प्रमुख डीएस हूदा ने एक दिन पहले कहा था कि खूंखार आतंकवादी संगठन ‘इसलामिक स्टेट’ इस क्षेत्र में मौजूदगी बनाने की कोशिश कर रहा है.
बहरहाल, गृह मंत्री राजनाथ सिंह के संसद में मंगलवार को संभावित बयान से सही जानकारियां सामने आयेंगीं, लेकिन इतना तय है कि आतंकवाद से निपटने की हमारी तैयारियों और रणनीति में अभी काफी खामियां हैं, जिन्हें तुरंत ठीक करने की जरूरत है.
हमले के बाद सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की कई बैठकें हुईं. उम्मीद करनी चाहिए कि इस वारदात से हम कुछ ठोस सबक लेंगे, जिससे भविष्य में ऐसी गलतियों की पुनरावृत्ति न हो. साथ ही, मुंबई में दर्जनभर धमाकों के दोषी याकूब मेमन को फांसी से बचाने की कोशिशों में पिछले कुछ दिनों से मुखर लोगों और संगठनों को इस हमले के बारे में भी अपना नजरिया साफ करना चाहिए.

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