जनता के प्रति जवाबदेह सर्वोच्च न्यायालय ने जनभावना के अनुकूल दागी सांसदों और विधायकों को बचानेवाली कानूनी धारा को रद्द कर तथा वोटरों को प्रत्याशियों को खारिज करने का हक देकर उनके हाथों में लोकतंत्र को बचाने का एक कारगार हथियार दे दिया है.
इसी बीच राहुल गांधी का अपने ही सरकार के विरुद्ध अप्रत्याशित बयान कि अध्यादेश को फाड़ कर फेंक देना चाहिए को भले ही उनकी निजी राय, वक्त की नजाकत भांप कर दिया गया बयान या ड्रामेबाजी–जो चाहे कह लीजिए, जितने भी निहितार्थ निकाल लीजिए, मगर यह जनभावना के अनुकूल है.
आगे नेताओं की बिरादरी इसका चाहे जो हश्र करे, राहुल गांधी की जितनी भी मुखालफत करे, देर से ही सही, मगर न्यायालय के साथ राहुल गांधी भी आम जनता के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं. अब बारी जनता की है, क्योंकि इस आगाज को दृढ़तापूर्वक अंजाम तक पहुंचाना तो उसे ही है. अब तो हमें एक–एक वोट की शक्ति पहचाननी ही होगी. यही तो वह शक्ति है, जिसके बल पर भ्रष्ट प्रत्याशी सत्ता परकाबिज होकर खास बन जाते हैं.
अपने हित में कानून बनाते–बिगाड़ते हैं और अनाप–शनाप तरीके अपना कर रातो–रात खाकपति से धनकुबेर बन जाते हैं. अब हमें अपने वोट का इस्तेमाल सही तरीके से करना होगा. इस अधिकार के साथ हमारा दायित्व यह भी है कि अब हम अपने प्रतिनिधि के तौर पर सही प्रत्याशी का चुनाव करें.
हमें किसी भी नेता के बहकावे में न आकर अपनी शक्ति को व्यर्थ गंवाने से बचना होगा. हमें अपनी निराशावादी धारणा बदलनी होगी कि मेरे एक वोट से क्या फर्क पड़ता है. अब राजनीतिक पार्टियों पर भी यह दबाव रहेगा कि वे अच्छे प्रत्याशी को ही मैदान में उतारें.
(नलय राय, रांची)