4 सितंबर 2013 को भारतीय लेखिका सुष्मिता बनर्जी की अफगानिस्तान में हत्या कर दी गयी. सुष्मिता मूलत: कोलकाता की थीं. जांबाज एक अफगानी युवक (काबुलीवाला) था, जो कारोबार के सिलिसले में कोलकाता आया था. कलकत्ते में ही दोनों की मुलाकात हुई और वहीं सुष्मिता ने जांबाज से शादी कर ली. शादी के बाद सुष्मिता जांबाज के साथ 1989 में अफगानिस्तान चली गयीं.
वहां जाने पर उन्हें पता चला कि जांबाज पहले से ही शादीशुदा है. जांबाज उन्हें वहां छोड़ फिर कोलकाता वापस चला आया. सुष्मिता को वहां तरह-तरह की यातनाएं सहनी पड़ीं. उन्होंने प्रत्यक्ष देखा कि वहां के पुरुष किस तरह औरतों पर अत्याचार करते हैं. फिर उन्होंने वहां से भागने की ठान ली और बहुत कठिनाइयों का सामना कर वह वापस 1995 में भारत आ गयीं. वापस आकर उन्होंने अपनी आपबीती एक किताब ‘काबुलीवाले की बंगाली बहू’ के नाम से लिख डाली. इस चर्चित किताब पर बॉलीवुड में ‘एस्केप फ्रॉम तालिबान’ नाम से एक फिल्म भी बनी.
17 सालों बाद वहां की औरतों में क्या बदलाव आया है, यह जानने के लिए वह एक बार फिर अफगानिस्तान गयी और इस बार उसे वहां मौत मिली. सुष्मिता ने अपनी दूसरी पुस्तक ‘तालिबान, अफगान और मैं’ में लिखा है – इसलाम धर्म में महिलाओं में किसी सवाल का जवाब देने की हिम्मत नहीं है. सब तरह का थोपा गया अन्याय उन्हें मानना पड़ता है, और पड़ेगा. वरना उसे या तो तलाक दे दिया जायेगा या वें मार दी जायेंगी. सुष्मिता ने लिखा है कि अफगान में कोलकाता की और भी कई लड़कियां हैं जो अपना दुर्भाग्य मान कर अत्याचार सह रही हैं. लेकिन सुष्मिता ने अत्याचार के खिलाफ आवाज उठायी. वह आज मर कर भी अमर हैं. उन्हें शत-शत नमन!
गीता दुबे, जमशेदपुर