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महंगाई पर लगाम के लिए ठोस पहल कब?
राष्ट्रीय स्तर के किन्हीं आंकड़ों की महत्ता इस कारण होती है, क्योंकि वे जहां वास्तविकता को दर्शाते हैं, वहीं भावी नीतियां तय करने में मददगार होते हैं. परंतु मूल्य सूचकांकों से जुड़े हालिया आंकड़े न तो वस्तुस्थिति को समझने में सहायक हैं और न ही उनसे भविष्य का सही संकेत मिल पा रहा है. थोक […]
राष्ट्रीय स्तर के किन्हीं आंकड़ों की महत्ता इस कारण होती है, क्योंकि वे जहां वास्तविकता को दर्शाते हैं, वहीं भावी नीतियां तय करने में मददगार होते हैं. परंतु मूल्य सूचकांकों से जुड़े हालिया आंकड़े न तो वस्तुस्थिति को समझने में सहायक हैं और न ही उनसे भविष्य का सही संकेत मिल पा रहा है.
थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति में मई, 2015 में मामूली वृद्धि हुई, पर वह अब भी शून्य से 2.36 फीसदी नीचे है, जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति अप्रैल के 4.87 फीसदी से बढ़ कर 5.1 फीसदी हो गयी है. मई, 2014 में यह दर 8.33 फीसदी थी, लेकिन उस समय की तुलना में इस वर्ष मई में दलहन के भाव 16.62 फीसदी अधिक बढ़े हैं. पिछले कुछ महीनों में यह बढ़त 25-30 फीसदी है.
कमोबेश यही हाल सब्जियों, फलों, दुग्ध उत्पादों आदि का भी है. कीमतें बढ़ने के पीछे तर्क है कि 2014-15 में बेमौसम बारिश और अन्य प्रतिकूल कारकों के कारण उत्पादन कम रहा है. फिर सीधा सवाल यह है कि इसका असर थोक मूल्य सूचकांक पर नहीं के बराबर कैसे है, जबकि खुदरा बाजार में कीमतों में भारी उछाल है! यह उछाल खाद्य पदार्थो के साथ-साथ अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में भी दिख रहा है.
मुद्रास्फीति के सकारात्मक आंकड़ों से रिजर्व बैंक के गवर्नर भी बहुत उत्साहित नहीं हैं. कुछ समय पहले उन्होंने नरमी के अल्पकालिक होने की आशंका जतायी थी. बीते कुछ महीनों से विभिन्न उत्पादों की घरेलू मांग कम होने के संकेत भी हैं.
इससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या मांग में कमी होने पर भी क्षमता के दबाव में कीमतें बढ़ सकती हैं? केंद्रीय खाद्य मंत्री ने उत्पादन में कमी का तर्क दिया है, तो कृषि मंत्री ने कमजोर मॉनसून की आशंका के मद्देनजर जरूरी चीजों की कीमतें काबू में रखने के लिए 500 करोड़ रुपये की आपात व्यवस्था की घोषणा की है. प्रधानमंत्री के निर्देश पर दालों का आयात भी हो रहा है. ऋण दरों में कमी से भी बाजार को उम्मीदें हैं.
ये उपाय सही हैं, पर खाद्य-वस्तुओं की कीमतों पर नियंत्रण के लिए अनाज की बरबादी, जमाखोरी और वितरण की खामियों पर काबू पाना जरूरी है, जिन पर सरकार का समुचित ध्यान नहीं है. दूसरी ओर कई जरूरी चीजों की महंगाई से परेशान आम जनता को तुरंत राहत की आस है.
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