डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
उनका मानना है कि अधिक मात्र में निवेश आया तो बड़ी कंपनियों के द्वारा रोजगार सृजन किया जाने लगेगा. लेकिन, इसके सफल होने की संभावना शून्य है, चूंकि बड़ी कंपनियों द्वारा यदि रोजगार सृजन किया भी गया, तो ऊंट के मुंह में जीरा जैसा होगा.
कांग्रेस नेताओं द्वारा एनडीए सरकार पर जन-विरोधी होने का आरोप लगाया जा रहा है. दूसरी ओर प्रधानमंत्री का कहना है कि एनडीए सरकार सच्चे मायने में जनहितकारी है.
यूपीए की पॉलिसी थी कि बड़ी कंपनियों पर टैक्स लगा कर राजस्व जुटाया जाये और इसका उपयोग मनरेगा, इंदिरा आवास तथा किसानों की ऋण माफी जैसी योजनाओं पर किया जाये. इसमें समस्या थी कि बड़ी कंपनियों द्वारा ऑटोमेटिक मशीनों का उपयोग किये जाने से रोजगार उत्पन्न नहीं हो रहे थे और भ्रष्टाचार पनप रहा था, जिससे रकम लाभार्थी तक कम ही पहुंच रही थी.
इन समस्याओं को दूर करने के लिए एनडीए सरकार ने सरकारी कल्याणकारी कार्यक्रमों को छोटा करने और निजी उद्यमों द्वारा रोजगार सृजन की रणनीति अपनायी है. वित्त मंत्री ने कंपनियों पर लागू कॉरपोरेट इनकम टैक्स की दर को वर्तमान 30 प्रतिशत से घटा कर अगले चार वर्षो में 25 प्रतिशत पर लाने की घोषणा की है. वित्त मंत्री को आशा है कि कंपनियां भारत में निवेश करेंगी. इससे रोजगार उत्पन्न होंगे. इन कंपनियों से वसूली गये टैक्स से मनरेगा जैसी जनकल्याणकारी योजनाओं को बढ़-चढ़ कर पोषित करने की जरूरत ही नहीं रह जायेगी.
वैश्विक प्रतिस्पर्धा को देखते हुए कॉरपोरेट टैक्स की दर को घटाना जरूरी भी था. भारत ने तमाम देशों के साथ डबल टैक्सेशन अवायडेंस एग्रीमेंट कर रखे हैं. अलग-अलग एग्रीमेंट में अलग-अलग व्यवस्था रहती है कि आयकर मेजबान देश में अदा किया जायेगा अथवा घरेलू देश में.
इतना स्पष्ट है कि मुख्यालय के भारत में स्थापित होने से हम आयकर अधिक मात्र में वसूल कर सकेंगे. इस समय आरसेलर मित्तल तथा टाटा कोरस जैसी भारतीय कंपनियां अपने मुख्यालय दूसरे देश में स्थापित करके भारत में कमाये गये लाभ पर आयकर दूसरे देश में अदा कर रही हैं, जहां कॉरपोरेट टैक्स की दर कम है. इसलिए कॉरपोरेट टैक्स घटा कर वित्त मंत्री ने इन्हें भारत में आयकर अदा करने का प्रोत्साहन दिया है, जो सही दिशा में उठाया गया कदम है.
कॉरपोरेट टैक्स में कटौती से कितना निवेश बढ़ेगा, यह तो आनेवाला समय ही बतायेगा. भारतीय कंपनियों के लिए लाभप्रद होगा कि अपना मुख्यालय उस देश कों स्थानांतरित कर दें, जहां उन्हें न्यूनतम टैक्स अदा करना पड़े.
भारी मात्र में निवेश आ जाये, तो भी आम आदमी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, यह संदिग्ध रहता है. कारण कि बड़ी कंपनियों के द्वारा ऑटोमेटिक मशीनों से उत्पादन किया जाता है.
इससे रोजगार का हनन होता है. अत: यदि कॉरपोरेट टैक्स में कटौती से भारी मात्र में निवेश आया, तो रोजगार हनन की गति तेज हो जायेगी और बेरोजगारी बढ़ेगी.
वित्त मंत्री चाहते हैं कि कंपनियों को आकर्षित करके निजी क्षेत्र में ज्यादा संख्या में रोजगार उत्पन्न हो तथा कॉरपोरेट टैक्स वसूल करके जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए राजस्व जुटाने की जरूरत ही नहीं रह जाये.
बाजार में 300 रुपये की दिहाड़ी मिल रही हो, तो 150 रुपये में मनरेगा में काम करने कौन आयेगा? लेकिन बड़ी कंपनियों द्वारा बड़ी मात्र में निवेश किया जाये, तो भी रोजगार उत्पन्न होना जरूरी नहीं है. 6 से 8 प्रतिशत सम्मानजनक विकास दर के बावजूद बड़े उद्योगों के द्वारा रोजगार कम ही सृजित किये गये.
यही कारण है कि मनरेगा जैसी जनकल्याणकारी योजनाओं के बावजूद यूपीए को जनता ने नकार दिया. यूपीए कार्यकाल में बड़ी कंपनियों के द्वारा पहले ऑटोमेटिक मशीनों से उत्पादन करके रोजगार का हनन किया गया. इससे बेरोजगारी बढ़ी. फिर इन्हीं कंपनियों से टैक्स वसूल कर इनके ही द्वारा बनायी गयी बेरोजगारी से राहत देने के लिए जनकल्याणकारी योजनाएं चलायी गयीं.
यह उसी प्रकार हुआ कि गरीब को पहले भोजन से वंचित करके उसे विटामिन दिया जाये. भोजन न मिलने से उसके स्वास्थ में जो बिगाड़ होगा, उसकी भरपाई विटामिन से कैसे होगी? बड़ी कंपनियों के द्वारा किये गये रोजगार के हनन की भरपाई कल्याणकारी योजनाओं से नहीं हो सकती है.
इसी आत्मघाती पॉलिसी को वित्त मंत्री अरुण जेटली मुश्तैदी से लागू करना चाह रहे हैं. उनका मानना है कि अधिक मात्र में निवेश आया तो बड़ी कंपनियों के द्वारा रोजगार सृजन किया जाने लगेगा.
लेकिन इसके सफल होने की संभावना शून्य है, चूंकि बड़ी कंपनियों द्वारा यदि रोजगार सृजन किया भी गया, तो ऊंट के मुंह में जीरा जैसा होगा.
वित्त मंत्री को चाहिए कि दूसरा रास्ता अपनायें. देश में श्रम सघन उत्पादन को प्रोत्साहन दें, जैसे टैक्सटाइल मिल पर टैक्स बढ़ा कर हैंडलूम व पॉवरलूम को संरक्षण दें. पूंजी सघन मशीनों से उत्पादित सस्ते कपड़े पर आयात कर बढ़ायें.
ऐसा करने से रोजगार सृजन होगा. लेकिन इससे कॉरपोरेटों की स्वच्छंदता खत्म हो जायेगी. वित्त मंत्री के सामने च्वॉयस है कि वे कॉरपोरेट हितों को बढ़ावा देंगे या समाज को साधेंगे.