साहस को सभी मानवीय गुणों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि इसके अभाव में हम मंजिल तय नहीं कर सकते. इतिहास भी गवाह है कि मंजिल तय करने में साहस का अहम योगदान है. वास्तव में महान लक्ष्य हमेशा साहस देते हैं और तब बाधाएं और जीवन का भय छोटा लगने लगता है.
साहस जब ज्ञान और लोकोपयोग से जुड़ जाता है, तो वह जीवन को बदलता है. नया प्रभात लाता है और फिर मंजिल तय कर लेता है.ऐसे लोग प्राय: सकारात्मक सोच रखनेवाले ही होते हैं. ऐसे साहसी लोगों के लिए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की ‘यह प्रदीप जो दीख रहा है, ङिालमिल दूर नहीं है, थक कर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है’ ज्यादा उपयोगी साबित होती हैं. जो लोग साहसी होते हैं, वह हर सूरत में अपनी मंजिल को पा लेने की क्षमता रखते ही हैं. साहस से वीरों को मंजिल मिलती है.
धर्मवीर राय, सारठ, देवघर