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अपनी करनी से इनसान का यह हाल

धरती पर जिंदगी का वजूद कुदरत का करिश्मा ही है. प्रकृति हमें जरूरत की हर चीज देती है. रोटी, कपड़ा, मकान के अलावा जीने के लिए प्राण वायु, पीने के लिए स्वच्छ पानी और जरूरी ताप के लिए धूप. प्रकृति हमारे साथ हमेशा एक सच्चे दोस्त की तरह बरताव करती है, फिर भी धरती में […]

धरती पर जिंदगी का वजूद कुदरत का करिश्मा ही है. प्रकृति हमें जरूरत की हर चीज देती है. रोटी, कपड़ा, मकान के अलावा जीने के लिए प्राण वायु, पीने के लिए स्वच्छ पानी और जरूरी ताप के लिए धूप.
प्रकृति हमारे साथ हमेशा एक सच्चे दोस्त की तरह बरताव करती है, फिर भी धरती में होने वाली हलचल से दिल सहम जाता है. मन हमेशा आशंकित रहता है कि कब क्या हो जाये? आज नेपाल में आये भूकंप से जान-माल की जो क्षति हुई है, वह दर्दनाक है. रफ्तार से चल रही जिंदगी थम सी गयी है.
इस आपदा से प्रकृति की अहमियत का तो पता चलता ही है, साथ ही इनसान की बेबसी भी झलकती है. प्राकृतिक आपदा के आगे इनसान कितना बेबस नजर आता है. प्रकृति को नजरअंदाज करके आगे बढ़ना भी हमारे लिए घातक साबित हो रहा है.
इनसान की सोच विडंबनापूर्ण है. हम प्रकृति से सिर्फ लेना जानते हैं, देने की हमारी प्रवृत्ति नहीं है. धरती की छाती पर चढ़ कर हम उसका दोहन करते हैं, लेकिन उसे सजाने की कोशिश नहीं करते हैं.
आज हिमालय की गोद में सैकड़ों बांध बनाये गये हैं, जो पर्यावरण संतुलन बिगाड़ रहे हैं. हमने नदियों को बांध दिया, पेड़ और जंगलात काट दिये हैं. चिलचिलाती धूप में छांव की आस करते हैं, पर अपने हिस्से का पेड़ नहीं लगाते हैं. पैसा कमाने के लिए नदियों से रेत निकालते हैं, पहाड़ों को तोड़ते हैं, जिससे नदियां और पहाड़ दोनों गायब हो रहे हैं.
इन सबका हिसाब प्रकृति ही करती है और कभी-कभी कहर बरसा कर अपना असली रूप दिखा देती है. जल ,जंगल, और जमीन हमारा है, मगर हम इनकी पूजा नहीं करते. यदि आज हम इनकी पूजा करना शुरू कर दें, तो हमारी जिंदगी के पल खुशियों से भर जायेंगे.
सिदाम महतो, बुंडू, रांची

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