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सशक्त राज्यों से ही देश में एकता

डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री हर राज्य के बाशिंदों को अपने विवेक से अपना रास्ता चुनना होता है. वे गलत रास्ता चुनें तो कोई बात नहीं, क्योंकि वे गलत मार्ग से बाहर आ जायेंगे. अत: राज्यों को स्वायत्तता देनी चाहिए. स्वायत्तता से ही देश की अखंडता बनी रहेगी. देश भर में एकल गुड्स एंड सर्विस टैक्स […]

डॉ भरत झुनझुनवाला

अर्थशास्त्री

हर राज्य के बाशिंदों को अपने विवेक से अपना रास्ता चुनना होता है. वे गलत रास्ता चुनें तो कोई बात नहीं, क्योंकि वे गलत मार्ग से बाहर आ जायेंगे. अत: राज्यों को स्वायत्तता देनी चाहिए. स्वायत्तता से ही देश की अखंडता बनी रहेगी.

देश भर में एकल गुड्स एंड सर्विस टैक्स को सरकार शीध्र लागू करना चाहती है. वर्तमान में हर राज्य को छूट है कि अपने विवेकानुसार माल पर सेल टैक्स लगाये. जैसे एक राज्य टीवी पर 10 प्रतिशत, तो दूसरा राज्य 12 प्रतिशत टैक्स वसूल कर सकता है.

गुड्स एंड सर्विस टैक्स के लागू होने के बाद राज्यों की यह स्वायत्तता छिन जायेगी. केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित दर पर सभी राज्यों द्वारा सेल टैक्स वसूल की जायेगी. ऐसा करने से एक राज्य से दूसरे राज्य को माल ले जाने में बॉर्डर पर सभी झंझट समाप्त हो जायेंगे. राज्यों के बीच व्यापार सुगम हो जायेगा और आर्थिक विकास की गति बढ़ेगी.

विषय केवल गुड्स एंड सर्विस टैक्स तक सीमित नही है. केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को हस्तांतरित की जानेवाली राशि पर भी स्वायत्तता का सिद्धांत लागू होता है. केंद्र तथा राज्य सरकारों के सम्मिलित खर्च में राज्यों का हिस्सा 55 प्रतिशत है, जबकि सम्मिलित राजस्व में हिस्सा मात्र 37 प्रतिशत है. राज्यों का खर्च ज्यादा और आय कम है. इस खाई को पाटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा वसूल की जा रही इनकम टैक्स, कस्टम ड्यूटी तथा एक्साइज ड्यूटी का एक हिस्सा राज्यों के बिना रोक टोक दे दिया जाता है. इस ट्रांसफर की मात्र वित्त आयोग द्वारा निर्धारित की जाती है.

इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार द्वारा अनुदान दिये जाते हैं, जैसे मनरेगा के लिए. लेकिन प्रधानमंत्री ने हाल में वित्त आयोग के सामने दलील दी है कि राज्यों के हिस्से को वर्तमान 32 प्रतिशत पर ही रखा जाये. इसमें वृद्धि नहीं की जाये, चूंकि केंद्र सरकार के समक्ष रक्षा आदि खर्चो की बढ़ती जिम्मेवारी है. गुड्स एंड सर्विस टैक्स की तरह यहां भी मुद्दा राज्यों की स्वायत्तता का है. राज्यों को बिना शर्त अधिक रकम देने से उनकी स्वायत्तता बढ़ती है.

तब राज्यों के द्वारा नये प्रयोग किये जा सकते हैं, जैसे मध्याह्न् भोजन का प्रयोग सर्वप्रथम तमिलनाडु में किया गया. आज इसे पूरे देश में लागू किया जा रहा है. यदि राज्यों को छूट न होती तो, ये प्रयोग न होते और इनका लाभ पूरे देश को नहीं मिलता.

केंद्रीय नियंत्रण के भी लाभ हैं. केंद्र द्वारा मनरेगा चलाये जाने से देश के गरीब वर्ग को राहत मिली है. स्वायत्तता होती, तो कतिपय कुछ राज्य ही इस कार्यक्रम को लागू करते. लालू सरकार स्वायत्त थी.

उसने सामाजिक सबलीकरण पर ध्यान दिया और सड़क, बिजली एवं पानी की बुनियादी सुविधाओं को नजरअंदाज किया. फलस्वरूप बिहार पिछड़ गया. वर्तमान में पंजाब की अकाली सरकार का ऐसा ही हाल है. राजस्व का उपयोग किसानों को फ्री बिजली बांट कर वोट खरीदने का इंतजाम किया जा रहा है. राज्य का औद्योगीकरण ठप्प है. यदि बिजली व्यवस्था पर केंद्र सरकार का नियंत्रण होता, तो पंजाब का यह ख्स्ता हाल न होता.

केंद्रीयकरण के खतरे भी हैं. केंद्र के हाथ में अधिक अधिकार आने से राज्यों को घुटन महसूस होती है. श्रीलंका का उदाहरण हमारे सामने है. तमिल बाहुल्य क्षेत्रों को स्वायत्तता न देने से वहां बीसों साल तक अलगाववाद की समस्या बनी रही.

जबकि कश्मीर को स्वायत्तता मिलने से राज्य का बड़ा हिस्सा भारत के साथ जुड़ा रहना चाहता है. रूस में केंद्रीय शासन प्रणाली लागू थी. लगभग 1920 के बाद 50 वर्षो तक रूस ने अप्रत्याशित प्रगति की. अगले चरण में केंद्रीय शासन शोषक की भूमिका में आ गया, राज्यों में विद्रोह हुआ और वह देश टूट गया. इसके सामने अमेरिका में लगभग 250 वर्षो से स्वायत्तता की परंपरा चल रही है.

अमेरिकी संविधान के अनुसार राज्य सर्वोपरि हैं. इसलिए अमेरिका स्थिर है, क्योंकि वहां कहीं भी अलगाववाद की गंध नहीं आती है. कारण यह कि हर राज्य को अपने विवेकानुसार चलने की छूट है.

केंद्रीयकरण की नीति में एक और खतरा है. 1975 की इमरजेंसी में केंद्र सरकार के आतंक की झलक मिलती है. देश में विद्रोह की आग भड़कने लगी थी. अब 1995 की डब्लूटीओ संधि का विचार करें. केंद्र सरकार ने इस संधि पर दस्तखत कर दिया. फलस्वरूप अमीर देशों के बाजार हमारे देश के किसानों के लिए नहीं खुले, उल्टे हमारे बाजार उन देशों के निर्यातों के लिए खोल दिये गये. पूरे देश के किसान केंद्र सरकार की उस नीति से आज त्रस्त हैं.

यदि राज्य सरकार दुराचारी हो जाये, तो शीघ्र ही सही रास्ते पर वापस आ जायेगी. केंद्र सरकार दुराचारी हो जाये, तो कोई रास्ता नहीं बचता. केंद्रीयकरण की नीति देश को कमजोर करेगी.

राज्यों को गलती करने का मौका नहीं देंगे, तो उनका विकास कैसे होगा? हर राज्य के बाशिंदों को अपने विवेक से अपना रास्ता चुनना होता है. वे गलत रास्ता चुने तो कोई बात नहीं, क्योंकि वे गलत मार्ग से बाहर आ जायेंगे. अत: राज्यों को स्वायत्तता देनी चाहिए.

स्वायत्तता से ही देश की अखंडता बनी रहेगी. नि:संदेह जीएसटी से तात्कालिक लाभ होगा, परंतु दीर्घकाल में यह हानिप्रद होगा. इसलिए जीएसटी पर केंद्र सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए. उसे दूर की सोचनी चाहिए.

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