बिहार और झारखंड दोनों ने विशेष राज्य का दर्जा हासिल करने के लिए अपना-अपना दावा ठोंका है. बिहार का मामला बहुत आगे जा चुका है. इसके लिए नीतीश सरकार ने दिल्ली में भी रैली की थी और बिहार की ताकत का अहसास कराया था. इसकी तैयारी की. दस्तावेज बनाया और तार्किक तरीके से रखा. यह बताने की कोशिश की कि कैसे लंबे समय से बिहार के साथ अन्याय हुआ है.
तमाम प्रयास के बावजूद बिहार को राष्ट्रीय औसत तक आने में लंबा समय लगेगा, इसलिए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा हर हाल में चाहिए. बिहार के तर्क से केंद्र भी सहमत नजर आ रहा है. यही कारण है कि बिहार को विशेष दर्जा मिलने में भले ही विलंब हो, पर उसे मदद मिलनी शुरू हो गयी है. बिहार पर कमेटी की रिपोर्ट भी आनेवाली है. इसी बीच पड़ोसी राज्य झारखंड में भी यह मांग जोर पकड़ने लगी है. हालांकि केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ल ने संसद में साफ-साफ कहा था कि झारखंड को विशेष दर्जा नहीं दिया जा सकता.
झारखंड विशेष दर्जा पाने की अहर्ता पूरा नहीं करता. हो सकता है कि मंत्री के मन में यह बात हो कि झारखंड में खनिज भरा पड़ा है, इसलिए वह अमीर है. सच यह है कि झारखंड के हालात खराब हैं. राज्य बने 13 साल हो गये, पर राज्य का विकास नहीं हो सका. गंठबंधन की सरकारों के कारण झारखंड पिछड़ता चला गया. अब राज्य में झामुमो, कांग्रेस और राजद की सरकार है. इसलिए हेमंत सोरेन की सरकार यह उम्मीद तो करती ही है कि बिहार की तरह झारखंड को भी केंद्रीय मदद मिलेगी. शिबू सोरेन ने जब प्रधानमंत्री से मुलाकात की तो उन्हें कुछ आश्वासन मिला है.
यह कितना बड़ा मामला है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक ओर झामुमो विशेष दर्जा मांग रहा है, वहीं, विपक्ष में आजसू इसे पूरे राज्य में मुद्दा बना रहा है. बाबूलाल मरांडी इसे चुनावी मुद्दा बनानेवाले हैं. भाजपा अंदर ही अंदर दस्तावेज बना रही है. यानी आगामी चुनाव में यह मुद्दा बन सकता है. झारखंड की मांग में दम भी है. जिस बिहार के साथ लंबे समय से अन्याय हुआ, उपेक्षा की गयी, उसी बिहार का हिस्सा तो झारखंड था. इसलिए उपेक्षा तो झारखंड की भी हुई. इसलिए बिहार और झारखंड दोनों राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए. जरूरत है कि झारखंड भी बिहार जैसी तैयारी के साथ आगे बढ़े.