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गेटवा तो सटवा दीजिए!

।।राजेंद्र तिवारी।।(कारपोरेट संपादक, प्रभात खबर)बोधगया में हुए ब्लास्ट को आज ठीक 55 दिन हो गये. एनआइए की टीम जांच में लगी हुई है, लेकिन अब तक पुख्ता तौर पर दोषियों को चिह्न्ति नहीं किया जा सका है. पिछले हफ्ते मैं एक दिन के लिये बोधगया में था. ब्लास्ट के बाद पहली बार. सोचा, क्यों न […]

।।राजेंद्र तिवारी।।
(कारपोरेट संपादक, प्रभात खबर)
बोधगया में हुए ब्लास्ट को आज ठीक 55 दिन हो गये. एनआइए की टीम जांच में लगी हुई है, लेकिन अब तक पुख्ता तौर पर दोषियों को चिह्न्ति नहीं किया जा सका है. पिछले हफ्ते मैं एक दिन के लिये बोधगया में था. ब्लास्ट के बाद पहली बार. सोचा, क्यों न महाबोधि मंदिर देखा जाये. ब्लास्ट के बाद वहां क्या बदला है? सुरक्षा कड़ी करने की तमाम बातें चल रही हैं, कितनी कड़ी हो गयी सुरक्षा? सुबह करीब 9 बजे मैं पहुंचा बुद्ध की 80 फुट ऊंची मूर्तिवाले कांप्लेक्स में. बहुत से चीनी श्रद्धालु आये हुए थे. हमने उनमें से एक से अंगरेजी में पूछा कि क्या आप चीन से हैं? उसने बहुत ही अनमने तरीके से नकारात्मक जवाब दिया. हालांकि वे सब चीन के ही थे और यह बात वहां मौजूद एक गाइड ने बतायी. श्रद्धालु मूर्ति के सामने झुक कर और फिर घुटनों के बल बैठ कर कुछ बुदबुदाते. फिर वे इस मूर्ति के चारों तरफ लगी मूर्तियों के सामने श्रद्धा से झुक रहे थे. बुद्ध की इसी विशाल मूर्ति के ऊंचे चबूतरे पर भी एक ब्लास्ट हुआ था और एक देसी बम भी रखा मिला था. चीनी श्रद्धालु उस जगह की ओर देख रहे थे. हम इस कांप्लेक्स से बाहर निकले तो कई फेरीवाले जुट चुके थे. जो चीज नहीं दिखायी दी, वह थी किसी भी तरह की सुरक्षा.

इसके बाद मैं महाबोधि मंदिर की ओर बढ़ा. मंदिर के पहले बने गोलंबर को दो तरफ से रास्ता बैरीकेड के जरिये रोका हुआ था. बोर्ड लगे हुए थे कि वाहन अंदर ले जाना मना है. अंदर एक जाइलो गाड़ी खड़ी थी. कुर्सी पर बैठा एक सुरक्षाकर्मी आराम से पैर सामने के पेड़ के चारों तरफ बने चबूतरे पर टिकाये था. वह खैनी बना रहा था. एक अन्य सुरक्षाकर्मी बंदूक लिये आराम से अपने कैंप की तरफ मुंह किये खड़ा था. तभी एक सुरक्षाकर्मी चिल्लाया- गेटवा तो सटवा दीजिए, ऐसेइ न गाड़ी घुस जाता है. बैरीकेड के पास खड़े सुरक्षाकर्मी ने ‘गेटवा’ खींच कर सटा दिया. तभी जाइलो के ड्राइवर को न जाने क्या सूझा, उसने गाड़ी मोड़ी और फिर उस जगह से बाहर चला गया. तभी एक गाड़ी और अंदर आ गयी.

मोटरसाइकिल-स्कूटर तो आ-जा ही रहे थे आसानी से. हम आगे बढ़े. मंदिर के मुख्य द्वार तक एक तरफ लाइन से भिखारी बैठे थे और दूसरी तरफ फेरीवाले जो फूल, प्रसाद और स्मृतिचिह्न् बेच रहे थे. कुछ तो बाकायदा जमीन पर दुकान जमाये थे. अलबत्ता, स्थायी रूप से बनी दुकानें टूट चुकी थीं और वहां पर बहुत धीमी गति से कुछ काम चल रहा था. मंदिर के गेट पर मेटल डिटेक्टर लगा हुआ था. एक तरफ महिलाओं की तलाशी के लिये बस नाम का परदे का घेरा था. उसके अंदर दो महिला पुलिसकर्मी बैठी थीं. कोई महिला आती तो ये दोनों खड़ी हो जातीं और उसका पर्स वगैरह देख कर जाने देतीं. और दूसरी तरफ जहां से पुरु षों का प्रवेश था, वहां पुलिसकर्मी बाहर से आये लोगों की ही तलाशी ले पा रहा था. कई लोग ऐसे दिखे जो आते ही पुलिसवालों को नमस्कार करते और बिना तलाशी के ही अंदर चले जाते. एक पुलिसकर्मी गेट पर ही कुर्सी डाले बैठा था. पता चला, वह यहां पर तैनात महिला टुकड़ी का इंचार्ज है.

मंदिर के स्वागत कक्ष में एक बड़ी स्क्रीन के टीवी पर क्लोज सर्किट कैमरे से दृश्य आ रहे थे. इन दृश्यों से पता चल रहा था कि कैमरा महाबोधि मंदिर के भीतर लगा होगा. कक्ष में कोई नहीं था. हमने वहां बाहर बैठे व्यक्ति को बुलाया और पूछा तो उसने बताया कि वह चपरासी है और उसकी ड्यूटी सुबह पांच बजे से दोपहर एक बजे तक है. हमने पूछा कि इस कक्ष में इस टीवी की मानिटरिंग भी कोई करता है क्या? वह बोला, जब भंते आते हैं, देखते हैं. अगला सवाल था, भंते कब और कितनी देर के लिए आते हैं? उसने बताया, 10-15 मिनट के लिए. खैर वहां से निकले. अंदर मंदिर में गये. बहुत भीड़ थी. श्रीलंका के सैकड़ों श्रद्धालु दिखायी दे रहे थे. बोधिवृक्ष के नीचे एक 64 श्रीलंकाई ध्यानमग्न थे और बाहर की तरफ 17 भिक्षु कतार में बैठे अपने आचार्य से ध्यान की मुद्राएं सीख रहे थे. जहां ब्लास्ट हुआ था, उस सीढ़ी पर नया पत्थर लगा दिया गया है. पास में ही जहां एक और ब्लास्ट हुआ था, वहां का दृश्य- छोटा गड्ढा वैसे ही था, कोई मरम्मत नहीं. छोटे से द्वार के छोटे-छोटे स्तंभ उखड़े हैं. उनके नीचे ईंटें लगा कर उन्हें सहारा देकर खड़ा कर दिया गया. बिलकुल 100 फीसदी भारतीय जुगाड़!

फिर अनिमेष लोचन मंदिर. यहां भी ब्लास्ट हुआ था. बोर्ड पर लिखा है कि बुद्ध ने ध्यान का दूसरा हफ्ता यहीं बिताया था, बोधिवृक्ष को अपलक देखते हुए. दानपात्र अब तक पिचका हुआ है. हां, आलमारियों के शीशे बदल दिये गये हैं और उन पर वार्निश कर दी गयी है. मंदिर प्रबंधन कमेटी के सदस्य सचिव नांगजे दोरजी से भी मुलाकात हुई, उनके आफिस में. वह आफिस में थे नहीं, थोड़ी देर बाद आये. उनके आफिस में भी टीवी स्क्रीन पर मंदिर से क्लोज सर्किट कैमरे से दृश्य चल रहे थे. वहां भी देखनेवाला कोई नहीं था. हमने उनसे पूछा कि इसे कौन मानिटर करता है? वे बोले, मैं ही देखता हूं. क्या इससे काम चल जाता है? वह बोले, कंट्रोल रूम बन रहा है. जब बन जायेगा, तब सब व्यवस्था हो जायेगी. कुछ पता चला कि ब्लास्ट किसने किया? दोरजी ने कहा, एनआइए जांच कर रही है. उन्होंने कुछ बताया नहीं है. जब वे बतायेंगे, तब ही मुङो पता चलेगा. लेकिन मेरा विश्वास है कि यह पाप करनेवालों को फल जरूर मिलेगा. मेरी निजी आस्था है कि इस पवित्र मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता. सैकड़ों साल से इसको कोई नुकसान नहीं पहुंचा सका है.

खैर हम वहां से निकले तो एक और आदमी से बात हुई. उसने कहा कि लोकसभा चुनाव से पहले कुछ पता नहीं चलेगा. हमने पूछा, ऐसा कैसे कह सकते हैं? उसने कहा, यह मैं नहीं कह रहा, खुफिया विभाग के एक बड़े अफसर कह रहे थे.

और अंत में..

पढ़िए शकील बदायूंनी की यह नज्म-

जिंदगी का दर्द लेकर इंकलाब आया तो क्या

एक दोशीजा पे गुर्बत में शबाब आया तो क्या

अब तो आंखों पर गम-ए-हस्ती के पर्दे पड़ गए

अब कोई हुस्न-ए-मुजस्सिम बेनकाब आया तो क्या

ख़ुद चले आते तो शायद बात बन जाती कोई

बाद तर्क-ए-आशिकी खत का जवाब आया तो क्या

मुद्दतों बिछड़े रहे फिर भी गले तो मिल लिए

हम को शर्म आई तो क्या उनको हिजाब आया तो क्या

एक तजल्ली से मुनव्वर कीजिए कत्ल-ए-हयात

हर तजल्ली पर दिल-ए-खानाखराब आया तो क्या

मतला-ए-हस्ती की साजिश देखते हम भी शकील

हम को जब नींद आ गयी फिर माहताब आया तो क्या

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