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न्याय प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत

आंकड़ों के आधार पर हमारी न्याय पालिका में अभी करीब साढ़े तीन करोड़ मामले लंबित हैं. मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं. आश्चर्य तब होता है कि भारतीय समाज का आधुनिकता की ओर से अग्रसर होने के साथ ही अदालतों में लंबित मामलों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है. देश में बढ़ते […]

आंकड़ों के आधार पर हमारी न्याय पालिका में अभी करीब साढ़े तीन करोड़ मामले लंबित हैं. मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं. आश्चर्य तब होता है कि भारतीय समाज का आधुनिकता की ओर से अग्रसर होने के साथ ही अदालतों में लंबित मामलों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है.
देश में बढ़ते मामलों से इससे जुड़े लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आना स्वाभाविक है. न्यायपालिका की त्रिस्तरीय व्यवस्था होने के बावजूद प्रशासनिक उदासीनता के चलते अदालतें न्यायाधीशों की कमी से जूझ रही हैं. न्याय प्रणाली इतनी सुस्त हो गयी है कि फैसला आते-आते आरोपी का जीवन तक समाप्त हो जाता है. लंबी प्रक्रिया के कारण देर से आये फैसले लोगों के मन मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ने में नाकामयाब साबित हो रहे हैं.
ऐसे में यह जरूरी है कि जिला विधिक न्यायालय द्वारा वर्ष में एक बार लगाये जानेवाले शिविरों का समयांतराल कम कर दिया जाये. इससे ग्रामीण व शहरों की अधिसंख्य आबादी को लाभ मिलेगा. साथ ही फास्ट ट्रैक अदालतों की संख्या बढ़ा कर इसकी पहुंच आम लोगों तक की जानी चाहिए. इसके साथ ही देश की सवा सौ करोड़ जनता को अनुशासित होने के लिए सीखना होगा. छोटी-छोटी समस्याओं के निदान के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाना बेवजह समय की बर्बादी के सिवा और कुछ नहीं है. देश में पंचायती राज के तहत कुछ फैसले करने का अधिकार पंचायतों को भी दिये गये हैं.
समस्याएं पहले पंचायत स्तर पर निपटा ली जानी चाहिए. इससे एक तो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को सम्मान मिलेगा, दूसरे अदालतों पर मुकदमों का बोझ कम होगा. वहीं, देश में न्याय प्रक्रिया में तेजी लाने की दिशा में ठोस काम हो.
सुधीर कुमार, गोड्डा

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