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यह क्रिकेट है भाई, गलती हो सकती है
आकार पटेल वरिष्ठ पत्रकार बांग्लादेश में यह भावना बनी रही कि उनकी जीत धोखे से छीन ली गयी. आइसीसी अध्यक्ष मुस्तफा कमाल ने इस घटना को तार्किकता के बजाय अपने बांग्लादेशी राष्ट्रीयता के नजरिये से देखा. उन्होंने कहा कि अम्पायरिंग की गलती सुविचारित हो सकती है. राष्ट्रमंडल देश भी एक विचित्र-से समूह हैं. जब बड़ी-बड़ी […]
आकार पटेल
वरिष्ठ पत्रकार
बांग्लादेश में यह भावना बनी रही कि उनकी जीत धोखे से छीन ली गयी. आइसीसी अध्यक्ष मुस्तफा कमाल ने इस घटना को तार्किकता के बजाय अपने बांग्लादेशी राष्ट्रीयता के नजरिये से देखा. उन्होंने कहा कि अम्पायरिंग की गलती सुविचारित हो सकती है.
राष्ट्रमंडल देश भी एक विचित्र-से समूह हैं. जब बड़ी-बड़ी चीजों की बात आती है, तो हम अपनी राष्ट्रीय विफलताएं स्वीकार करने को तैयार हो जाते हैं. भारतीय, पाकिस्तानी और बांग्लादेशी लोग यह स्वीकार करने में आगे रहेंगे कि हमारा समाज निर्धन, निरक्षर, ज्यादातर अशिष्ट और प्राय: अलोकतांत्रिक है. फिर भी हम कहीं न कहीं पर तो इसकी सीमारेखा खींचते ही हैं, जो प्राय: क्रिकेट पर खिंचती है.
अब यह कि हम कभी-कभी क्रिकेट में भी बुरे हो सकते हैं, यह हमें अस्वीकार्य है. मुङो वह घटना याद है, जब श्रीलंका टेस्ट खेलनेवाला एक देश बन गया और इसके शुरुआती मैच भारत के साथ खेले गये थे. रमेश रत्नायके और असान्थे डी मेल जैसे गेंदबाजों के साथ वे एक उल्लेखनीय-सी दिखती टीम थे, जो भारत के गेंदबाजों से ज्यादा तेज थे ही, साथ ही साथ उनमें कुछ सक्षम बल्लेबाज भी थे.
30 वर्ष पहले के उस पहले भ्रमण में कपिल देव (यदि मैं गलत नहीं हूं, तो उनकी पहली गेंद पर अरविंद डी’सिल्वा ने छक्का लगाया था) अंपायरिंग से इतने क्षुब्ध हो उठे कि उन्होंने यह टिप्पणी जड़ दी कि लंका की टीम यदि अपने देश से बाहर खेले, तो कभी नहीं जीतेगी. बहरहाल, ज्यादा लंबा वक्त नहीं गुजरा, जब उन्होंने यह पाया कि वे गलत थे. मगर उस पल तो वे यह स्वीकार करने को तैयार नहीं थे कि उनके देश की शक्तिशाली टीम एक छोटे पड़ोसी से बुरी तरह पराजित हो सकती है.
विश्व कप के क्वार्टर फाइनल में भारत ने बांग्लादेश को बिल्कुल एकतरफा ढंग से पराजित किया. इस पूरे टूर्नामेंट में भारतीय गेंदबाजी ने, जो असाधारण रूप से उसकी बल्लेबाजी जैसी ही अच्छी हो गयी है, यह सुनिश्चित कर दिया था कि विपक्षी पूरे सौ ओवर के दौरान दबे रहें. और हुआ भी यही कि भारत पूरे दिन हावी रहा. किंतु यदि बांग्लादेशी अखबारों को देखा जाये, तो उनकी टीम के विरुद्ध एक साजिश थी. ‘विवादित अंपायरिंग ने सेमीफाइनल के लिए बांग्लादेशी उम्मीद तोड़ी’, यह बांग्लादेश के अखबार डेली स्टार की सुर्खी थी. इस अखबार ने यह महसूस किया कि जब रोहित शर्मा ने 91 के स्कोर पर रुबेल हुसैन के फुलटॉस गेंद को मिडविकेट पर मारा, तो उस वक्त उन्हें मिली राहत इस मैच का मोड़ बिंदु था.
बल्लेबाज ने और 46 रन बना तो लिये, लेकिन मैच की अंतिम तसवीर के मुताबिक, उस वक्त भारत की बची हुई बल्लेबाजी को देखते हुए यह गलती शायद बहुत अहम नहीं थी.
‘जब रिप्ले दिखाया गया, तो इयान गोल्ड के फैसले की गलती उस दृश्य को बार-बार देखने के साथ ही साफ होती गयी, क्योंकि जब बल्लेबाज ने गेंद मारी, उस वक्त गेंद तेजी से नीचे जा रही थी. ऐसे फैसले प्राय: लेग अंपायर द्वारा दिये जाते हैं, किंतु बांग्लादेशी प्रशंसकों को तब हैरत हुई, जब इस मौके पर अलीम दर ने चुप्पी साध ली.’
दूसरों ने भी यह महसूस किया कि यह एक गलती थी. भूतपूर्व भारतीय बल्लेबाज वीवीएस लक्ष्मण ने ट्वीट किया, ‘गोल्ड का बुरा फैसला, निश्चित रूप से यह कमर के ऊपर नहीं थी. रोहित के लिए एक भाग्यशाली मौका. यह अतिरिक्त 20 रन लेने का फर्क हो सकता है.’
तथ्य यह है कि अंपायर बुरे फैसले लिया करते हैं. जब बांग्लादेश बल्लेबाजी करने उतरा, तो इमरुल कायेस पहले ओवर में उमेश यादव की अंतिम गेंद पर विकेट कीपर को कैच थमा कर आउट थे. स्नीकोमीटर ने इसे दिखाया भी, किंतु अंपायर ने अपील अनसुनी कर दी. हालांकि, जब बांग्लादेशी अखबार अंपायरिंग पर सवाल खड़े कर रहे थे, तो उन्होंने इस संदर्भ को भुला दिया. यह भी एक तथ्य है कि इस मामले में गोल्ड की गलती नहीं थी, न ही यह उनका फैसला था.
स्क्वेयर लेग पर अलीम दर ने तुरंत ही (गेंद कैच होने के पहले ही) नो बॉल का इशारा कर दिया था. अब यह हो सकता है कि दर से यह यकीन करने में गलती हो गयी कि गेंद कमर से ऊपर थी (यह कमर से लगभग दो इंच नीचे थी), मगर यह कोई साजिश जैसी चीज तो कतई नहीं थी. बांग्लादेशियों ने स्टैंड में एक बैनर ऊंचा उठा रखा था, जिस पर लिखा था ‘आइसीसी : इंडियन क्रिकेट काउंसिल’. यह नारा वस्तुत: रमीज राजा की तरफ से आया, जिन्होंने ट्वीट किया, ‘बहुत खूबआइसीसी (इंडियन क्रिकेट काउंसिल). आप लोग तो पूरी तरह बिक गये!’
इस फैसले के आधार पर किस तरह राजा बिकने तक पहुंच गये, यह एक रहस्य है और वह कोई अकेले न थे. शोएब अख्तर ने ट्वीट किया, ‘बेचारे बांग्लादेशियों ने अच्छा खेल दिखाया.. मैच में धोखाधड़ी भी थी. मगर अगली बार..’
किसने धोखा खाया, इसे अनकहा छोड़ दिया गया. शायद राजा ने बाद में यह महसूस किया कि वे कुछ ज्यादा कह गये (या फिर वे भारत की ट्विटर सेना के अपशब्दों के दबाव में आ गये) और ट्वीट किया, ‘शानदार खेल! टीम इंडिया को लगातार 7 जीतों के लिए बधाई.’
बांग्लादेश में यह भावना बनी रही कि उनकी जीत धोखे से छीन ली गयी. आइसीसी अध्यक्ष मुस्तफा कमाल ने इस घटना को तार्किकता के बजाय अपने बांग्लादेशी राष्ट्रीयता के नजरिये से देखा. उन्होंने कहा कि ‘अंपायरिंग की गलती सुविचारित हो सकती है. हालांकि, मैं इसे पूरी निश्चितता से नहीं कह सकता, मगर यह वैसी ही लगी. क्रिकेट में मानवीय गलतियां संभव हैं, पर पूरे दर्जनभर फैसले बांग्लादेश के विरुद्ध ही कैसे जा सकते हैं? यह बहुत घटिया अंपायरिंग थी.’ फिर उन्होंने इसमें अपना वह सबूत जोड़ा कि क्यों दुनिया उनके गरीब देश के विरुद्ध है. उनका यह सबूत मैदान में लगे विराट डिस्प्ले बोर्ड पर प्रदर्शित यह नारा था, जो कहता था, ‘जीतेगा भई जीतेगा, इंडिया जीतेगा.’
कमाल ने कहा कि ‘अंपायरिंग की गलती ने खेल बरबाद कर दिया, किंतु मैं यह देख कर हैरान था कि भारत को समर्थन देते नारे किस तरह उन बड़े परदों पर प्रदर्शित किये जा सकते थे. ऐसा लगा कि भारत की जीत पहले से तय थी.’ तथ्य तो यह है कि भारत की विज्ञापन एजेंसियां विश्व क्रिकेट और उसके विराट परदों को नियंत्रित करती हैं. बाकी दुनिया को इसका अभ्यस्त हो जाना चाहिए, क्योंकि यह बदलनेवाला नहीं है.
बांग्लादेश में अखबारों ने इस पहलू पर कई सुर्खियां छापीं, जिनमें शामिल थे- ‘बांग्लादेश विवादास्पद अंपायरिंग के विरुद्ध अपील करेगा : आइसीसी’ और ‘आइसीसी को युद्ध अपराधों का अभियोग चलाना चाहिए’ जो फिर एक अतिशयोक्ति थी. मैंने जब गौर किया, तो पता चला कि आइसीसी का मतलब अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट) था.. मैंने अब पन्ना पलट लिया है और बांग्लादेश के प्रशंसकों को भी यही करना चाहिए.
(अनुवाद : विजय नंदन)
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