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राज्यों को बांटने भर से विकास नहीं होगा

देश के दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश को बांट कर तेलंगाना राज्य के निर्माण की खबरें पिछले दिनों छायी रहीं. राज्य के बंटवारे के पीछे विकास की दलील दी जा रही है. लेकिन इस मुद्दे का आंध्र प्रदेश राज्य का ही एक धड़ा विरोध कर रहा है, वहीं देशभर के बुद्धिजीवियों का मत है कि इससे […]

देश के दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश को बांट कर तेलंगाना राज्य के निर्माण की खबरें पिछले दिनों छायी रहीं. राज्य के बंटवारे के पीछे विकास की दलील दी जा रही है. लेकिन इस मुद्दे का आंध्र प्रदेश राज्य का ही एक धड़ा विरोध कर रहा है, वहीं देशभर के बुद्धिजीवियों का मत है कि इससे केवल प्रशासनिक खर्च ही बढ़ेगा, कि नये राज्य के विकास की गारंटी मिलेगी.

तेलंगाना मामले को हवा मिलने के साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों में अलगअलग राज्यों के गठन की मांग भी तेज हो गयी है. इनमें पश्चिम बंगाल को काट कर गोरखालैंड, महाराष्ट्र को काट कर विदर्भ, बिहार को काट कर मिथिलांचल और उत्तर प्रदेश के चार हिस्से कर अलग राज्यों के निर्माण की मांग की जा रही है.

लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या एक अलग पहचान बनाने भर के लिए राज्यों के टुकड़े करना सही है. ऐसे तो हर जिले की अलग पहचान होती है, तो क्या उन्हें अलग राज्य का दरजा दे दिया जाये? आज आंध्र प्रदेश की गिनती देश के संपन्न राज्यों में होती है, तब इस राज्य को बांटने की जरूरत क्यों पड़ी? राज्यों को तोड़ना राष्ट्रीयता के लिए एक खतरा है.

रामजग शर्मा

मुसाबनी

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