।। मिथिलेश झा ।।
(प्रभात खबर, रांची)
किसी–किसी दिन कोई गाना बहुत याद आता है. यह समय और घटना के आधार पर बदलता रहता है. आजकल पड़ोसी ‘आओ ट्विस्ट करें..’ गाता रहता है. पूछा कि बहुत से गीत लोकप्रिय हैं, फिर यह गीत. उसने कहा कि समय के हिसाब से इंसान को बदलते रहना चाहिए.
अब देखो न अचानक से पाकिस्तान भी बदल गया है. भारत सरकार के दोस्त और दुश्मन बदल गये हैं. कल तक दोस्ती की बात करनेवाला पाक आज दुश्मनी की हदें पार कर रहा है. बार–बार सीमा लांघ रहा है. मैंने उसे बताया कि सीमा तो सभी लांघ रहे हैं. सरकार लांघ रही है, विपक्ष लांघ रहा है. और तो और, शहीद जवानों के परिजन क्या अपनी सीमा नहीं लांघ रहे! पहले फूलों की क्या चाह होती थी, आज क्या हो गयी है.
तब फूल कहते थे : मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर तुम देना फेंक, मातृभूमि पर शीष चढ़ाने जिस पथ जायें वीर अनेक. और अब! अब तो नेताओं के गले का हार, सुंदरी का श्रृंगार बन कर ही खुद को धन्य समझ रहे हैं. शायद यही वजह है कि सीमा के प्रहरियों के परिजनों की भी प्राथमिकताएं बदल गयी हैं.
सीमा पर जिस जवान को तैनात किया जाता, वह देश की बलिवेदी पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने का आशीष अपने बड़ों से चाहता था. जब सीमा से खबर आती कि किसी का बेटा, पति या भाई शहीद हुआ है, तो गम के साथ गर्व भी होता था. सेना तो अब भी वही है, पर उनके जवान बदल गये. जमाना भी बदल गया. जवानों के परिजनों के विचार भी बदल रहे हैं. अब तो परिजन चाहते हैं कि देश उनके सपूत की शहादत का बदला चुकाये.
अब परिजनों के चेहरे पर बेटे की शहादत का गर्व नहीं दिखता. दिखते हैं, तो बस आंसू. बेटे, भाई और पति के मरने का गम तो होता है. साथ ही दर्द होता है कि कोई नेता या मंत्री उनके घर नहीं आया. सेना का सबसे बड़ा अधिकारी उन्हें ढांढस बंधाने नहीं आया. सरकार ने दुश्मन देश पर हमला नहीं किया. शहीद के परिजनों को नौकरी नहीं मिली. उन्हें रसोई गैस की एजेंसी या पेट्रोल पंप नहीं मिला.
अब जरा बात करें नेताजी की. नेता, यानी देश को चलानेवाले. वे सर्वज्ञाता हैं. जनता के अन्नदाता हैं. तभी तो कोई शहीद हुआ नहीं कि कर दिया कुछ लाख रुपये सहायता देने का एलान. कुछ दिन संसद और विधानसभा में हो–हंगामा हुआ. मीडियावाले सामने आये, तो कुछ लोग ऊलजुलूल बयान देकर फंस जाते हैं.
पार्टी कारण बताओ नोटिस देती है, फिर मामला आया–गया और हो गया. अब बिहार के एक मंत्री ने कहा कि सेना में लोग शहीद होने के लिए ही भरती होते हैं. पड़ोसी तपाक से बीच में बोल पड़ा : ओ माई गॉड! इसलिए किसी नेता का बेटा कभी सेना में भरती नहीं होता. कोई काम नहीं मिलता, तो नेतागीरी में जुट जाते हैं. भाई, तुमने तो मेरी आंखें खोल दीं.