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नये राज्यों का गठन राष्ट्रवाद के लिए खतरा

वर्तमान में देश में 28 राज्य व 7 केंद्र शासित प्रदेश हैं. आंध्र प्रदेश से काटकर अलग राज्य तेलंगाना बनाने की सहमति केंद्र से मिली है, जिसका अलग–अलग खेमों द्वारा समर्थन व पुरजोर विरोध हो रहा है. सबके अपने–अपने तर्क हैं. वहीं, अलग–अलग राजनैतिक और क्षेत्रीय हितों को साधने के लिए विभिन्न स्तरों से बोडोलैंड, […]

वर्तमान में देश में 28 राज्य 7 केंद्र शासित प्रदेश हैं. आंध्र प्रदेश से काटकर अलग राज्य तेलंगाना बनाने की सहमति केंद्र से मिली है, जिसका अलगअलग खेमों द्वारा समर्थन पुरजोर विरोध हो रहा है. सबके अपनेअपने तर्क हैं. वहीं, अलगअलग राजनैतिक और क्षेत्रीय हितों को साधने के लिए विभिन्न स्तरों से बोडोलैंड, गोरखालैंड, विदर्भ और उत्तर प्रदेश के चार हिस्से करने की भी मांगें उठने लगी हैं. लेकिन एक राष्ट्रवादी नजरिये से देखें तो यह कतई उचित नहीं है.

देश के जितने ज्यादा टुकड़े होंगे उतना ज्यादा प्रशासकीय खर्च बढ़ेगा और सारा बोझ आम जनता के ऊपर आना तय है. पूर्व में नये राज्यों का निर्माण भाषागत विविधता के आधार पर होता था, लेकिन अब तो वोट बैंक ही आधार दिखायी देता है. क्या यही था सरदार वल्लभ भाई पटेल का सपना! महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू या लाल बहादुर शास्त्री ने देश को अलगअलग राज्यों में बांटने की बात कभी नहीं सोची थी. पूर्व में 562 स्वतंत्र रियासतों को एक करने में जो कुर्बानियां हुई थीं, वह वर्तमान राजनेताओं द्वारा व्यर्थ कर दी जा रही हैं. ईश्वर इन नेताओं को जल्द सद्बुद्घि दें!

।। हेमंत कु मिश्र ।।

(चतरा)

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