झारखंड के पिछड़ेपन का बड़ा कारण यहां निजी कंपनियों द्वारा सिर्फ दोहन की नीति का अपनाना और राज्य या समाज के विकास के नाम पर खानापूर्ति करना रहा. खदानों के आवंटन के साथ ये भी शर्ते शामिल रही हैं कि कंपनियां उस क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक विकास में सरकार के साथ कदम से कदम मिला कर चलेंगी.
एक अप्रैल 2014 से इसे कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी पॉलिसी 2014 के तहत और अधिक स्पष्ट कर दिया गया. जिसके बाद राज्य में भी इसकी निगरानी के लिए कि यहां स्थित कंपनियां सीएसआर के तहत क्या-क्या और कितना कर रही हैं, कमेटियां गठित कीं. बैठकें भी हुईं. कंपनियों पर सीएसआर के तहत काम का दबाव भी बढ़ा. लेकिन यह पर्याप्त नहीं है.
सीएसआर के तहत कराये जा रहे विकास कार्यो या सामाजिक कार्यो का ऑडिट भी आवश्यक है. ज्यादातर सीएसआर को या तो बढ़ा-चढ़ा कर बता दिया जाता है या यह सिर्फ कागजों में होता है. झारखंड में जिन कंपनियों को खदानें दी जाती हैं, उनका निवेश या उत्पादन इकाई बैठाना अनिवार्य रहा है. लेकिन इसके मापदंड भी पूरे नहीं हो रहे. झारखंड के आधारभूत ढांचे के विकास में भी इन का सहयोग लिया जाना चाहिए. अब तक राज्य में जो कंपनियां निवेश करती रही हैं उनमें से ज्यादातर यहां खदानों के लिए आयीं. नया निवेश या नयी इकाइयों के आने के लिए आधारभूत ढांचे का विकास और कानून-व्यवस्था का दुरुस्त होना बेहद जरू री है.
ऐसे में जब हर प्रदेश अपने यहां निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई प्रलोभनकारी कदम उठा रहा है, वैसे में राज्य आधारभूत ढांचे के विकास के लिए जूझ रहा है. वर्तमान स्थिति और झारखंड के बजट आकार को देखते हुए आधारभूत ढांचे में रातों-रात परिवर्तन संभव नहीं. लेकिन यदि आधारभूत ढांचों के निर्माण में यहां अवस्थित बड़े घराने आगे आयें, तो काम मुश्किल नहीं होगा. आधारभूत ढांचे में निवेश करने वाली कंपनियों को राज्य सरकार और क्या सुविधाएं मुहैया करा सकती हैं, ताकि वे इसके लिए प्रोत्साहित हों, यह भी देखा जाना चाहिए. कॉरपोरेट को भी राज्य के विकास के लिए ऐसे राज्य के बड़े प्रोजेक्ट को पूरा करने में सरकार के साथ हाथ मिलाने के लिए सामने आना चाहिए. राज्य का विकास सबका एजेंडा होगा तभी हम इस दौड़ में अन्य राज्यों से आगे निकल पायेंगे.