* खास पत्र
।। सुधीर कुमार ।।
(हंसडीहा, दुमका)
इस साल, यानी 2013 में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने एक सराहनीय फैसला लिया कि अब प्रतिवर्ष 20 मार्च को अंतरराष्ट्रीय खुशहाली दिवस के रूप में मनाया जायेगा. ऐसा इसलिए, क्योंकि भूटान विश्व में अकेला देश है जिसने सकल राष्ट्रीय खुशहाली को देश के विकास का आधिकारिक पैमाना घोषित किया है. भूटान से प्रेरित होकर यूएन ने यह निर्णय लिया कि अन्य देश भी भौतिक और प्रौद्योगिकी विकास से होनेवाले नुकसान को ध्यान में रख मानव विकास करें.
भूटान की अर्थव्यवस्था उतनी बड़ी नहीं है, फिर भी इस देश की आबादी संतुष्ट है, प्रसन्न है. न मन में लालच है और न ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचा कर विकास की लालसा. मानव विकास का तात्पर्य केवल आर्थिक विकास ही नहीं है, बल्कि यह मानव कल्याण के विभिन्न क्षेत्रों पर आधारित है.
वर्तमान में विश्व में बड़ी अर्थव्यवस्था वाले कई देश हैं, लेकिन उसकी एक बड़ी आबादी मुलभूत सेवाओं एवं भौतिक सुख–सुविधाओं से वंचित है. आज मनुष्य पैसे के पीछे भाग रहा है. क्या पैसे से सारी खुशियां खरीदी जा सकती हैं? 2013 में ही यूएनडीपी की मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट भी आयी, जिसमें भारत को 134वां स्थान दिया गया है, जिसे अन्य वर्षो की तुलना में अच्छा नहीं कहा जा सकता.
मानव विकास से जुड़े तीनों मूलभूत क्षेत्रों की भी स्थिति बदतर होती जा रही है. शिक्षा, स्वास्थ्य के नाम पर नयी–नयी नीतियां बनायी जाती हैं, फिर भी स्थिति संतोषजनक नहीं! आज भी भारत की लगभग 40 करोड़ आबादी गरीबी में जीवनयापन कर रही है, जिसे रोटी, कपड़ा, मकान, पेयजल जैसी मूलभूत आवश्यकताएं भी नसीब नहीं हैं. भारत में संसाधनों की कमी नहीं है. जरूरत है उसके न्यायोचित और विवेकशील प्रबंधन की.