शनिवार 27 जुलाई को छपे माणिक मुखर्जी के लेख ‘कब तक नौकरी का झांसा देगी सरकार’ पर अपनी सहमति जताते हुए मैं भी इस पत्र के माध्यम से युवा मुख्यमंत्री को इस ओर ध्यान देने की अपील करना चाहता हूं, ताकि हमारे यहां के बेरोजगार शिक्षक गाहे–बगाहे अपने आप को शोषित न समझें.
अक्सर शिक्षकों के अभाव को हर भाषण और हर समाचार में सुर्खियों में दर्शाया जाता है. इस कारण उम्मीदवारों में खुद को लेकर एक नयी उम्मीद जाग जाती है, लेकिन जब इसे पूरा करने का समय आता है तो वह उम्मीद नाउम्मीदी में बदल जाती है. अंतत: उम्मीदवार मानसिक अवसाद से घिरता चला जाता है. झारखंड में नयी सरकार ने अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया, तो कहीं इस बार भी वर्ष 2011 की शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया जैसा हाल न हो जाये, जहां 8042 सफल उम्मीदवारों की नियुक्ति अधर में लटकी है.
जब सरकारी स्कूलों का रिजल्ट खराब होता है, तो लोग सरकारी शिक्षण व्यवस्था को कोसते हैं, शिक्षकों की काबिलीयत पर उंगलियां उठायी जाती हैं, लेकिन वस्तुस्थिति कोई समझना नहीं चाहता कि आखिर इसकी वजह क्या है.
।। समीर बाखला ।।
(ई–मेल से)