।। राजेंद्र तिवारी ।।
(कारपोरेट संपादक, प्रभात खबर)
आज इस कॉलम में इन शुरुआती चंद शब्दों के अलावा मेरा लिखा कुछ नहीं है. यानी सबकुछ कॉपी–पेस्ट है. जी हां, फेसबुक से कॉपी और यहां पर पेस्ट. पोस्ट करनेवालों का नाम जान–बूझ कर नहीं दिया है. पता नहीं, किसको दिक्कत हो जाये कि मैंने तो अपनी वॉल पर अपने दोस्तों के लिए पोस्ट किया था, जमाने के लिए नहीं. इसलिये यहां जमाने से नाम छिपाये जा रहे हैं–
मुलायम कारसेवकों के लिए दुखी हैं, राजनाथ कह रहे हैं कि अंग्रेजी ने देश को चौपट कर दिया. अन्ना की तबीयत खराब है, इफ्तारी से पहले बच्चे मर गये. भाग नत्था, भाग!
नरेंद्र मोदी को संघ परिवार ने मैदान में उतार कर सारे देश में मनमोहन सरकार की जनविरोधी नीतियों पर से बहस खिसका कर मोदी के व्यक्तित्व विवेचन और क्षमता के प्रचार में लगा दी है. देश मनमोहन की नीतियों से तबाह है, मोदी पर संघ परिवार बहस चला कर बहुराष्ट्रीय निगमों और कारपोरेट घरानों की लूट–लीला पर परदा डालने का काम कर रहा है. आज मोदी का राष्ट्रवाद समस्या नहीं है, समस्या यह है कि भाजपा के पास मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों का कोई विकल्प है तो अब तक मोदी ने उन नीतियों को पेश क्यों नहीं किया? मोदी मजमेबाजों की तरह चुनाव को नाटक बनाने में लगे हैं. वे नीतियों पर नहीं बोल रहे, थोथे बयान दे रहे हैं. थोथे बयान अंतत: बहुराष्ट्रीय निगमों को मदद करते हैं.
मैं अपने देश से प्यार करता हूं, लेकिन मैं राष्ट्रवादी नहीं हूं.
अंग्रेजी महादरिद्र भाषा है, इसमें पप्पू और चंपू के लिए कोई शब्द नहीं है..
उत्तराखंड की आपदा में वे लोग भाग्यशाली रहे जो सुरिक्षत निकाल लिये गये और घर पंहुच गये. लेकिन कुछ ऐसे मामले भी सामने आये हैं जिनमें लोगों को सुरिक्षत निकाला गया बताया गया, इसके बावजूद आज तक वे घर नहीं पंहुचे हैं. उनके परजिन हताश हैं, आक्रोश में हैं और सरकार पल्ला झाड़ रही है.
नीतीश सरकार से भाजपा की विदाई के बाद क्या हो गया बिहार को???
1. बगहा में फायरिंग.
2. बोधगया में हमला.
3. खिचड़ी खाने से 22 बच्चे मरे.
4. औरंगाबाद में नक्सली हमला.
लौह पुरुष क्या होता है? इस घोर जेंडर डिबेट वाले दौर में राजनीति में पौरुषवाद को खत्म कीजिए. लोहे का न तो पुरुष हो, न लोहे की महिला. आदमी बनो यार. आदमी ढूंढ़ो.
हावड़ा–भुवनेश्वर यात्रा में एक बड़ी त्रासदी भिखारियों को लेकर है. आप किसी भी बस या ट्रेन में सवार हुए नहीं कि एक के बाद एक दर्जनों भिखारी और बहुरूपिये आप को परेशान कर डालेंगे. कोई सांप तो कोई नगाड़ा या फिर करतब दिखाते हुए आप से पैसे मांगेंगा. कुछ तो यों ही खाने के नाम पर माँगेंगे. इनमें बच्चों और महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है. दरअसल किसी तीर्थस्थल से भी ज्यादा भिखारियों की भीड होती है इस रूट की ट्रेनों और बसों में. पश्चिम बंगाल में यह स्थिति ज्यादा खराब है
..पड़ोसी के घर के पेड़ का फल चुरा कर खाने में और भगवान को चोरी का फूल चढ़ाने में सुपर आनंद है..कसम से! ..वैसे,ये दोनों काम मैंने बचपन में किये! पत्थर से टिकोला तोड़ कर नमक के साथ खाना और अंधेरे में बगीचे से फूल तोड़ना! अब न आम में स्वाद वैसा स्वाद लगता है, न भगवान को फूल चढ़ाने का वो उन्माद!..
आप कैसे इंसान हो यार, आपको सैद्धांतिक रूप से यह तय करने में ही 2,000 साल लग गये कि औरतों को पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए. और यह हिस्सा न देना पड़े, इसलिए हत्या से लेकर कौन से तिकड़म नहीं हो रहे हैं इस सभ्य–सुसंस्कृत समाज के सुंदर–सुशील परिवारों में.
फेसबुक पर अगर आपको जरा–सा भी अहसास हो रहा हो कि आप वरिष्ठ, वरिष्ठतम अथवा अतिवरिष्ठ पत्रकार या साहित्यकार रहे हैं या हैं, इसलिए सभी आपकी बातों पर सहमत होकर हुंकारी पारे, तो बेहतर है आप फेसबुक छोड़ दीजिए! क्योंकि यहां रह कर आपको निराशा ही मिलेगी! जितनी किताबों का अध्यन आपने लाइब्रेरी की खाक छान कर किया है, उससे सौ गुना ज्यादा कंटेंट यहां दो क्लिक में मिल जाता है सो नो डाउट, पढ़ाकू भी आपसे ज्यादा मिल सकते हैं!
आरटीआइ से दूर रहना है तो मेरे वोट से भी दूर रहना. समझ गये?
सच्ची और खरी बात कह देने से कितने दुश्मन बन जाते हैं, यह मैंने इस आभासी दुनिया से जाना. जो आपसे कभी मिले नहीं वे भी आपके दुश्मन बन जाते हैं और जो जानते हैं तथा मित्र होने का ढोंग करते हैं उन्हें भी खुन्नस निकालने का एक बहाना मिल जाता है. वाकई यह दुनिया बड़ी विचित्र है! इससे तो अच्छा है कि फेसबुक की सक्रि यता से विदा ले लें और दूसरों की पोस्ट पर टिप्पणी करें.
इलाहाबाद से छप कर बनारस में बंटने वाला ‘द हिंदू’ आठ रुपये का हो गया! नेट पर ही पढ़ना होगा ?
ये स्त्री विरोधी चुटकुला है या व्यवस्था विरोधी : नर्क में बहुत सारी औरतें खुशी–खुशी अपना वक्त काट रही थीं. बीच–बीच में मस्ती भी कर लेती थीं. शैतान इस नजारे को देख कर कुढ़ गया. उसने फरिश्ते से पूछा, ये कौन लोग हैं जो यहां भी खुश हैं. फरिश्ते ने कहा, हिंदुस्तानी बहुएं हैं. हर जगह एडजस्ट कर जाती हैं. कहती हैं कि बिल्कुल ससुराल वाला माहौल है..
भोलू चायवाले– हमहूं सुन रहे कि अब मोदिया लड़ी बनारस से. लल्ला बजरंगी– अरे भोलुआ, इज्जत से नाम लियो, अगला परधान होए वाला है. इदरीस– काहे की इज्जत बे, भुला गये जब ऊ इटली क कुत्ती बोल गवा रहा और उके बच्चवन के पिल्ला. बोले क तमीज न ह, चलें परधान बने.
और अंत में..
खाली समय में,
बैठ कर ब्लेड से नाखून काटें,
बढ़ी हुई दाढ़ी में बालों के बीच की
खाली जगह छांटें
सर खुजलाएं, जम्हुआएं,
कभी धूप में आएं/ कभी छांह में जाएं,
इधर–उधर लेटें/ हाथ–पैर फैलाएं,
करवटें बदलें/दाएं–बाएं,
खाली कागज पर कलम से
भोंडी नाक, गोल आंख, टेढ़े मुंह
की तसवीरें खींचें
बार–बार आंखें खोलें/बार–बार मींचें,
खांसें, खंखारें/ थोड़ा बहुत गुनगुनाएं,
भोंडी आवाज में
अखबार की खबरें गाएं,
तरह–तरह की आवाज
गले से निकालें,
अपनी हथेली की रेखाएं/ देखें–भालें,
गालियां दे–दे कर मक्खियां उड़ाएं,
आंगन के कौओं को भाषण पिलाएं,
कुत्ते के पिल्ले से हाल–चाल पूछें,
चित्रों में लड़िकयों की बनाएं मूंछें,
धूप पर राय दें, हवा की वकालत करें,
दुमड़–दुमड़ तकिए की जो कहिए हालत करें,
खाली समय में भी बहुत से काम हैं
किस्मत में भला कहां लिखा आराम है!
–सर्वेश्वरदयाल सक्सेना