प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आकाशवाणी पर प्रस्तुत कार्यक्रम ‘मन की बात’ में उन्होंने एक नशामुक्त समाज के सपने का जिक्र किया है. यह सपना अकेले देश के प्रधानमंत्री का नहीं, बल्कि हर जागरूक व्यक्ति का है. यहां तक कि नशे के लती व्यक्ति भी नहीं चाहते हैं कि उनकी संतानें नशे की गिरफ्त में आएं.
दुर्भाग्य की बात यह भी है कि इसके दुष्प्रभाव को जानते हुए भी समाज में नशे के प्रति लोगों की आसक्ति लगातार बढ़ती ही जा रही है. शादी-विवाह का अवसर हो या फिर किसी अन्य हर्ष-उमंग का मौका, युवा वर्ग नशा करने के बाद ही मस्ती के मूड में आते हैं. शराब के जाम छलकना, बीयर के झाग का उड़ना, सिगरेट के छल्लों का हवा में उड़ना, तंबाकू और पान के पीक से चित्रकारी करना तो आम हो गया है. कहीं न कहीं समाज और सरकार में इस नशे को स्वीकार्यता मिल चुकी है. नशामुक्त समाज की अवधारणा को अमलीजामा पहनाने के लिए पहले तो ऐसे नशीले पदार्थो की आवक और उसके उत्पादन पर प्रतिबंध लगाने की दरकार है. दूसरा यह कि जो युवा भौतिकता की अंधी दौड़ में फंस गया है, उसे संभालने की जरूरत है. यदि हम अपनी युवा पीढ़ी को सही-गलत का अर्थ समझा सके, सामाजिकता और पारिवारिक जिम्मेदारी का बोध करा सके, उसके कर्तव्य व दायित्व को परिभाषित करा सके, तो बहुत हद तक नशामुक्त समाज स्थापित करने में सफल हो जायेंगे.
देश को नशामुक्त बनाने की जिम्मेदारी अकेले हमारे प्रधानमंत्री की नहीं है. यह हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि हम युवा पीढ़ी को उसकी जिम्मेदारी के प्रति जागरूक बनायें. उसे उसकी जिम्मेदारी का बोध कराना जितना अधिक देश के प्रधानमंत्री का कर्तव्य है, उतना ही हमारा भी है.
अर्चन प्रकाश मंडल, जमशेदपुर