।। सत्य प्रकाश चौधरी ।।
(प्रभात खबर, रांची)
कुछ जीव-जंतु लोकल होते हैं और कुछ ग्लोबल. मसलन, शेर एक लोकल जानवर है, जो गिनी-चुनी जगहों पर पाया जाता है. हिंदुस्तान में तो ऐसी सिर्फ एक जगह है. आप ठीक समझे, वह गुजरात है. यहां तक कि इस सूबे का मुखिया भी ‘शेर’ है. लेकिन, जैसे काबुल में सिर्फ घोड़े नहीं पाये जाते, वहां गधे भी होते हैं.
इसी तरह, गुजरात में भी ‘शेर’ के साथ-साथ ‘कुत्ते के बच्चे’ भी पाये जाते हैं. ‘कुत्ते का बच्च’ और उसका खानदान गुजरात तक महदूद नहीं, वह ग्लोबल है. यानी दुनिया के हर कोने में पाया जाता है और हर जगह कुचला जाता है. उसके कुचले जाने पर अधिक से अधिक ‘च् च्’ किया जा सकता है, पर इसके लिए सजा की बात करना बेमानी है.
अब अमेरिका को ही ले लीजिए. वहां एक ‘कुत्ते के बच्चे’ को एक ‘मर्द-बच्चे’ ने बस यूं ही गोली से उड़ा दिया. यह कोई गुनाह तो था नहीं, बस छोटा-मोटा ‘हादसा’ था, इसलिए ‘मर्द-बच्चे’ को बाइज्जत बरी कर दिया गया. उन मूर्खो का क्या किया जाये, जिन्होंने मुगालता पाल लिया था कि इंसाफ के लिए ‘मर्द-बच्चे’ को सूली चढ़ा दिया जायेगा और अब ऐसा नहीं होने पर बेवजह बवाल काट रहे हैं! इतनी दूर क्यों जायें, अपने यहां तमिलनाडु में एक ‘कुत्ते के बच्चे’ ने अपने से ऊंची बिरादरी में शादी कर ली. नतीजा यह हुआ कि उसे कुत्ते की मौत मार दिया गया.
एक बार फिर इंसाफपसंद हल्ला मचा रहे हैं, पर वे भूल रहे हैं कि कुत्ते को मारना कोई जुर्म नहीं है. चलिए, थोड़ा और नजदीक की बात करते हैं. समझ में नहीं आता कि ‘कुत्ते के बच्चे’ स्कूल क्यों जाते हैं. बेवजह सरकार की आफत बढ़ाते हैं. भाई, पढ़ाई तो वहां होती नहीं, सिर्फ खिचड़ी मिलती है. ऐसे स्कूल में जाने से कोई न्यूटन या आइंस्टीन तो बन नहीं जायेगा. पर ‘कुत्ते के बच्चे’ मानते कहां हैं! स्कूल में टूटे पड़ते हैं. देखिए नतीजा, जहरीली खिचड़ी खाकर छपरा में करीब दो दर्जन साफ हो गये. अब लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, पर भूल रहे हैं कि कुत्तों को मारना गुनाह नहीं है.
दुनिया के विभिन्न इलाकों में इन ‘कुत्तों’ के नाम, जाति-धर्म, रंग, नस्ल अलग-अलग हो सकते हैं. पर जो बात इनमें साझा है, वह यह कि सभी मजलूम हैं. अगर ये एक हो जायें, तो दुनिया हिल उठे. इसलिए इन्हें आपस में लड़ाया जाता है.
बावजूद इसके, अगर ये अपने हक की आवाज उठायें, तो इन्हें लाठी-गोली से खामोश करने के लिए सरकारों ने ‘शिकारी कुत्ते’ पाल रखे हैं, जिनका कहर कभी बिगहा, फारबिसगंज में टूटता है, तो कभी तपकरा, बस्तर में. ‘कुत्ते’ इस हद तक कुचले जाते हैं कि इन्हें अपनी जिल्लत का एहसास खत्म हो जाता है. जिस दिन इनमें यह एहसास जगा, फैज के लफ्ज हकीकत बन जायेंगे- ये चाहें तो दुनिया को अपना बना लें/ ये आकाओं की हड्डियां तक चबा लें.