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सड़कें बेहतर हों, तभी कुचले जाते हैं कुत्ते

।। पुष्यमित्र ।। (पंचायतनामा, रांची) परम पद को प्रतीक्षित आदरणीय मोदी जी के श्रीमुख से निकलने के बाद कुत्ताजी एक बार फिर से शान-ए-महफिल हो चुके हैं. होना भी चाहिए, क्योंकि बॉलीवुड की विभिन्न चलचित्र रचनाओं में अक्सर हमने सुना है- ‘हर कुत्ते का दिन आता है.’ हालांकि एक शोध इस तथ्य की स्थापना भी […]

।। पुष्यमित्र ।।

(पंचायतनामा, रांची)

परम पद को प्रतीक्षित आदरणीय मोदी जी के श्रीमुख से निकलने के बाद कुत्ताजी एक बार फिर से शान-ए-महफिल हो चुके हैं. होना भी चाहिए, क्योंकि बॉलीवुड की विभिन्न चलचित्र रचनाओं में अक्सर हमने सुना है- ‘हर कुत्ते का दिन आता है.’

हालांकि एक शोध इस तथ्य की स्थापना भी करता पाया गया है कि सौ में से निन्यानवे कुत्तों का दिन कुचले जाने के बाद ही आता है. जैसे सौ में से निन्यानवे वोटरों का दिन पांच साल तक कुचले जाने के बाद ही आता है. इस तथ्य पर आपत्ति की जा सकती है कि कुत्ता कुचले जाने पर परलोक चला जाता है और वोटर.. वैसे कुछ टीकाकार यह भी कहते हैं कि वोटर वस्तुत: परलोक का ही वासी होता है और अनाधिकृत तौर पर इहलोक में रहता है. बहरहाल यहां इहलोक-परलोक के द्वैत में पड़ने से लाभ नहीं, हम कुत्ताजी की प्रासंगिकता पर बहस कर रहे हैं, खास तौर पर कार, ड्राइवर और सवारी के प्रसंग में.

इस संदर्भ में एक आधुनिक शोधकर्ता का कहना है कि अगर सड़कें बेहतर गुणवत्ता की हों, तो अक्सर कुत्ते कुचले चले जाते हैं. क्योंकि गड्ढा-रहित सड़क पर ड्राइवर बेलगाम हो जाता है और वाहन की गति-सीमा शतक तक पहुंचने के लिए आतुर हो जाती है. ऐसे में ट्रैफिक के सिद्धांतों से अनजान सड़कजीवी श्वान बेवजह मारे जाते हैं. इस सिद्धांत की पुष्टि हम बिहार के लोगों ने पिछले सात-आठ सालों में कर ली है. कोई ठोस आंकड़ा नहीं है, पर यह जरूर कहा जा सकता है कि लालूजी के धर्मनिरपेक्ष शासन में कुत्तों की मौत कम ही होती थी.

हालांकि वे खुद बिहार की सड़कों के लिए हेमाजी के गालों का सपना देखा करते थे, मगर वे अनुभवी व धैर्यवान थे. उन्हें मालूम था कि अगर उनका सपना साकार हो गया, तो बेवजह हजारों कुत्ते अकाल कवलित हो जायेंगे. मगर, भाजपा धर्मनिरपेक्षता को एक छद्म मानती है, सो उसके शासन में सड़कों पर खासा ध्यान दिया जाता है. उसे पता है कि अगर कुत्तों से निजात पानी है, तो सड़कें बेहतर होनी चाहिए. ऐसे में अगर मोदीजी के गुजरात में कोई कुत्ते का बच्च उनकी गाड़ी के नीचे आकर दब जाता है, तो यह स्वभाविक है.

पिछले कुछ सालों में हमने भी बिहार में कई कुत्तों को गाड़ियों के नीचे आकर दबते देखा है. ऐसी ही एक घटना फारबिसगंज में भी हुई थी, जहां एक औद्योगिक परिसर बनने जा रहा था. हमने झारखंड में भी कई कुत्तों के मर जाने की कहानियां सुनीं. उन दुर्घटनास्थलों पर आज कोयला खदानें हैं, स्टील फैक्टरियां हैं, बड़े-बड़े बांध हैं. ओड़िशा के नियमगिरी में और मध्यप्रदेश के चुटका में कुत्ते मरने-मारने पर उतारू हैं. अब इन कुत्तों को मरना ही है, या नगरपालिका का वाहन इन्हें ले जायेगा और नसबंदी करके छोड़ जायेगा. अब इन घटनाओं पर दुख तो होगा ही, मगर किया क्या जाये.

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