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व्यक्तिगत जिम्मेवारी है स्वच्छता

सार्वजनिक जगहों पर हाथ में झाड़ू लिए फोटो छपवानेवाले प्रसिद्ध लोगों का संदेश है : ‘वे अन्य लोग हैं, जो देश को गंदा करते हैं और मुङो सार्वजनिक स्थलों को साफ करने में मदद करनी चाहिए.’ हमें इस प्रवृत्ति को पूरी तरह से पलटना होगा. हमारे देश की तरह ही थाईलैंड में बहुत-सी कारों के […]

सार्वजनिक जगहों पर हाथ में झाड़ू लिए फोटो छपवानेवाले प्रसिद्ध लोगों का संदेश है : ‘वे अन्य लोग हैं, जो देश को गंदा करते हैं और मुङो सार्वजनिक स्थलों को साफ करने में मदद करनी चाहिए.’ हमें इस प्रवृत्ति को पूरी तरह से पलटना होगा.

हमारे देश की तरह ही थाईलैंड में बहुत-सी कारों के डैशबोर्ड पर कोई छोटी दैवी प्रतिमा रखी होती है. लेकिन यहां की तरह थाई कारों में रखी अधिकतर मूर्तियों का मुख कार के अंदर बैठे लोगों की तरफ न होकर, बाहर सड़क की ओर होता है. हमारी प्रवृत्ति यह है कि ‘ईश्वर, हमें सुरक्षित रखे’, जबकि थाईलैंड के निवासियों का भाव यह है कि ‘ईश्वर, सड़क का ध्यान रखे, ताकि किसी को चोट न पहुंचे.’

थाईलैंड एक साफ-सुथरा देश है. जब उनका देश आज की तुलना में, भारत की तरह ही, अपेक्षाकृत गरीब था, तब भी वहां के सार्वजनिक स्थल स्वच्छ हुआ करते थे. आज उनके तकरीबन सभी सार्वजनिक शौचालय गंदगीमुक्त हैं और सफाई के मामले में यूरोप के देशों के बराबर, और अक्सर बेहतर हैं. बैंकॉक की सड़कों की तुलना में मुंबई एवं दिल्ली, और ढाका, लाहौर व कराची, की सड़कें कहीं नहीं ठहरतीं. हम एक विकासशील देश हैं (‘विकसित’ होना सिर्फ अर्थव्यवस्था से ही नहीं, बल्कि सभ्यता और संस्कृति से जुड़ा हुआ है, जो कि अब भी हमारे यहां आदिम स्तर पर है). थाईलैंड एक विकसित राष्ट्र है और इसका श्रेय मैं हीनयान संप्रदाय को देता हूं, जिसे बौद्ध धर्म में थेरवाद भी कहा जाता है. थाई निवासी इसी संप्रदाय के अनुयायी हैं. थेरवाद को माननेवाले देशों- श्रीलंका, वियतनाम, थाईलैंड, कंबोडिया, बर्मा आदि- में एक निश्चित समानता परिलक्षित होती है. बहरहाल, यह एक अलग विषय है. जो बात मैं रेखांकित करना चाहता हूं, वह यह है कि स्वच्छ भारत अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बेहतरीन पहलों में से एक है.

पिछले सप्ताह मुलायम सिंह की एक बहू ने एक विवादास्पद बयान दिया. उन्होंने भारत की सफाई को लेकर मोदी की प्रवृत्ति की तुलना गांधी की प्रवृत्ति से की. मैं उनकी बात से सहमत हूं और मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री एक गांधीवादी रवैये का अनुसरण कर रहे हैं. अगर आज गांधी होते, तो वे मोदी की पहल का समर्थन करते.

यह सच है कि मोदी के मन-मष्तिस्क में यह विचार नया नहीं है. जब उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर्वाधिक प्रभावशाली नेता माधव सदाशिव गोलवलकर की जीवनी लिखी थी, तो उसमें इस घटना का उल्लेख किया था- ‘एक बार गुरुजी (गोलवलकर) आंध्र प्रदेश के दौरे पर थे. उनकी ट्रेन के आने का समय सुबह साढ़े चार बजे था. वहां गाड़ी 45 मिनट रुकती थी और स्वयंसेवकों ने तय किया कि इस दौरान गुरुजी रेलगाड़ी के शौचालय का उपयोग कर लें. आगे की 100 मील की यात्र के लिए वे थर्मस में चाय लेकर चल रहे थे और इस तरह निर्धारित समय पर बैठक में पहुंचने की उनकी योजना थी. रात में गुरुजी ने वरिष्ठ स्वयंसेवक बापुराव मोघे से अगले दिन का कार्यक्रम पूछा. उन्होंने इस तैयारी पर गौर किया और कहा, ‘क्या आपने ट्रेन के शौचालयों में लगी एक छोटी सूचना कभी देखी है?’ बापुराव ने कहा कि उन्होंने देखी है. गुरुजी ने कहा, उसमें लिखा होता है कि ‘स्टेशन पर गाड़ी खड़ी हो, तो शौचालय का उपयोग न करें.’ मैं इस नियम का हमेशा पालन करता हूं.

इस पर नरेंद्र मोदी ने लिखा है : ‘जरा विचार करें कि कितने लाख लोग यात्र करते हैं और इस सूचना पर ध्यान देते हैं. कितने लोग सही में इसका पालन करते हैं?’ स्वच्छ भारत अभियान को शुरू करते हुए मोदी ने एक शपथ ली और लोगों को भी यह शपथ लेने के लिए प्रेरित किया : ‘मैं शपथ लेता हूं कि मैं स्वयं स्वच्छता के प्रति सजग रहूंगा और उसके लिए समय दूंगा. हर वर्ष 100 घंटे यानी हर सप्ताह दो घंटे श्रमदान करके स्वच्छता के लिए संकल्प को चरितार्थ करूंगा. मैं न गंदगी करूंगा और न किसी और को करने दूंगा. सबसे पहले मैं स्वयं से, मेरे परिवार से, मेरे मोहल्ले से, मेरे गांव से शुरुआत करूंगा. मैं यह मानता हूं कि दुनिया के जो भी देश स्वच्छ दिखते हैं, उसका कारण यह है कि वहां के नागरिक गंदगी नहीं करते और न ही होने देते हैं. इस विचार के साथ मैं गांव-गांव और गली-गली स्वच्छ भारत मिशन का प्रचार करूंगा.’

‘मैं आज जो शपथ ले रहा हूं, वो अन्य 100 व्यक्तियों से भी करवाऊंगा. वे भी मेरी तरह 100 दिन स्वच्छता में योगदान देंगे. इसके लिए मैं प्रयास करूंगा. मुङो मालूम है कि स्वच्छता की तरफ बढ़ाया गया मेरा एक कदम पूरे भारत देश को स्वच्छ बनाने में मदद करेगा.’

यहां जो मुख्य कार्य है, वह है लोगों को यह शपथ लेने के लिए प्रोत्साहित करना (मोदी ने इसके लिए अभिनेताओं और उद्योगपतियों समेत कुछ प्रसिद्ध लोगों को नामांकित किया है) और सार्वजनिक स्थलों को साफ करने में कुछ समय देना. मोदी ने जो तरीका अपनाया है, उससे मुङो थोड़ी असहमति है. उनकी यह बात बिल्कुल सही है कि लोगों को अपनी गलती स्वीकार करनी होगी, लेकिन सार्वजनिक स्थलों की सफाई पर ध्यान केंद्रित करना ठीक नहीं है. अभियान का मुख्य ध्यान व्यक्तिगत रूप से फैलायी जानेवाली गंदगी पर होना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाये कि अब ऐसा न हो. यह एक सांस्कृतिक पहलू है.

सरकार ने भारत को स्वच्छ बनाने के अन्य उपायों की एक लंबी सूची तैयार की है, जिसके विवरण शहरी विकास मंत्रलय की वेबसाइट पर देखे जा सकते हैं. इनमें से अधिकतर उपाय दूसरों को लक्षित करते हैं. इन उपायों में से कुछ इस प्रकार हैं : ‘जागरूकता बढ़ाने के लिए मोहल्ला स्तर पर प्रभात-फेरियों का आयोजन; बस स्टैंडों, सड़कों, पार्को, बाजारों, सार्वजनिक स्थलों, फुटपाथों, घरों के आसपास की जगहों और रेलवे स्टेशन के इर्द-गिर्द सफाई करना; और मोहल्ला सभाओं की बैठक करना, जिसमें कोई गणमान्य व्यक्ति इस पहल पर संभाषण करे.’

मेरी राय में इस बात को रेखांकित करना कि भारत को प्रदूषित करने के लिए दूसरे लोगों ने क्या किया है, एक गलती है. सार्वजनिक जगहों पर हाथ में झाड़ू लिए फोटो छपवानेवाले प्रसिद्ध लोगों का संदेश है : ‘वे अन्य लोग हैं, जो देश को गंदा करते हैं, और मुङो सार्वजनिक स्थलों को साफ करने में मदद करनी चाहिए.’ हमें इस प्रवृत्ति को पूरी तरह से पलटना होगा. इस अभियान का पूर्ण ध्यान व्यक्ति और संस्कृति पर होना चाहिए. अब हमारे सम्मुख मूर्ति ही सही रूप में होनी चाहिए, सड़क नहीं. हमें यह तय करना होगा कि कम से कम हम गंदगी नहीं फैलायें, दूसरे लोग चाहे जो करें. अगर सचमुच में ऐसा होता है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह पहल बेहतर तरीके से सफलता की ओर अग्रसर होगी.

आकार पटेल

वरिष्ठ पत्रकार

aakar.patel@me.com

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