भोपाल के युवा इंजीनियर ने
‘द कबाड़ीवाला’ पोर्टल बनाया
इंटरनेट ने हमारे कई कामों को आसान कर दिया है. मोबाइल फोन से लेकर मकान खरीदने तक, यहां हर चीज का समाधान है. यही नहीं, पुरानी चीजों को ठिकाने लगाने के लिए भी ओएलएक्स और क्विकर जैसी साइटें मौजूद हैं. लेकिन पुराने अखबार और लोहा-लक्कड़ को भी कोई पूछनेवाला है क्या? जी हां. आइए जानें कि वह कौन है.
राजीव चौबे
दीपावली आ रही है. आपके भी घर में साफ -सफाई का काम चल रहा होगा. इस दौरान रद्दी अखबार, प्लास्टिक के बेकार डिब्बों, खाली बोतलें, लोहा-लक्कड़ आदि का अंबार भी निकलेगा. अब फर्ज कीजिए कि आपने इस कबाड़ को ठिकाने लगाने के लिए कंप्यूटर चालू किया, इंटरनेट खोला, कबाड़ का भाव पता किया और इसे अपने घर से उठा ले जाने के लिए रिक्वेस्ट पोस्ट कर दी. थोड़ी देर बाद आपके पास एक फोन कॉल आये, जिस पर आप अपने कबाड़ का सौदा तय करने के लिए समय पक्का करें. आपके बताये समय पर कबाड़ीवाला इलेक्ट्रॉनिक तराजू लेकर आये और बिना किसी बेईमानी के सही कीमत देकर चला जाये तो कैसा हो!
यह सब केवल कल्पना जैसा ही लगता है. लेकिन भोपाल के युवा आइटी इंजीनियर अनुराग असाती ने अपने प्रोफेसर कवींद्र रघुवंशी के साथ मिल कर इस कल्पना को साकार किया है. अनुराग ने ‘द कबाड़ीवाला प्रोजेक्ट’ शुरू किया है, जो लोगों को बिना किसी झंझट के, बिना समय जाया किये आसानी से उनके कबाड़ की सही कीमत दिलाता है. अनुराग बताते हैं कि प्रमुख शहरों में हमारे गोदाम हैं, जहां कबाड़ को छांट कर अलग-अलग रखा जाता है. इसके बाद हम इसे रीसाइक्लिंग कंपनियों को बेच देते हैं. हमारी योजना भविष्य में खुद का रीसाइक्लिंग प्लांट लगाने की है. इसके लिए हम निवेश की भी तलाश में हैं. अनुराग आगे बताते हैं कि लगभग एक साल पहले मात्र 20 हजार रुपये की लागत से शुरू किया गया यह उद्यम 30-40 प्रतिशत के लाभ के साथ आज 12 हजार से अधिक ग्राहकों से जुड़ चुका है.
फिलहाल भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर, इंदौर, बैतूल, सागर, दमोह से संचालित ‘द कबाड़ीवाला’ आनेवाले दिनों में मुंबई, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और छत्तीसगढ़ तक अपना व्यापार बढ़ाने की योजना रखता है.
अनुराग बताते हैं कि हमारे पोर्टल पर एल्युमीनियम, बैटरी, कंप्यूटर, अखबार, प्लास्टिक, पॉलिथीन आदि रद्दी सामानों को बेचने के लिए रिक्वेस्ट पोस्ट की जा सकती है. इन सब चीजों के लिए अलग-अलग भाव निश्चित किये गये हैं. इसके अलावा, हम अपने ग्राहकों से फेसबुक और व्हाट्सऐप के जरिये भी जुड़े रहते हैं. 24 वर्षीय अनुराग कहते हैं कि हर शहर से हमें करीब 18 से 20 ऑर्डर मिलते हैं, जिसके लिए हमने हर शहर में लगभग 15 कबाड़ीवालों को काम पर रखा हुआ है.
अनुराग कहते हैं कि हमारा प्रोजेक्ट लोगों को बिना किसी मशक्कत के उनके कबाड़ से छुटकारा दिला कर उसका सही भाव मुहैया कराता है, इसके साथ ही यह कबाड़ का सही प्रबंधन कर उसकी रीसाइक्लिंग में भी मदद करता है.