यह गौरव की बात है कि गुरु देव रवींद्रनाथ ठाकुर के गीतों को मूल रूप से दो देशों, भारत और बांग्लादेश ने राष्ट्र गान के रूप में अपनाया है. पर गुरु देव ने एक और देश, श्रीलंका के लिए भी यह काम किया है. वहां के राष्ट्रगान को लिखने में गुरु देव की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. उन्होंने श्रीलंका की क्षेत्रीय भावना और प्रेरक तत्वों को समाविष्ट कर एक गीत लिखा था जिसे आनंद समरकून जो ब्रिटिश शासन काल में श्रीलंका से गुरु देव के ‘विश्वभारती’ में अध्ययन करने आये थे, ने अनुवाद किया था.
पढ़ाई के दौरान वे गुरु देव से काफी प्रेरित हुए. उन्होंने श्रीलंका लौटकर ‘श्रीलंका माता’ गीत का अनुवाद किया जो वहां का राष्ट्रगान बना. गाने की धुन में रवींद्र संगीत का वास्तविक प्रभाव परिलक्षित होता है. यह बात अभी भी प्रसारित नहीं हो पायी है जो हमारी एक तरह की उदासीनता और नाकामी है.
मनोज आजिज, जमशेदपुर