10.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कुपोषित देश के पोषित देवता

‘आइए बाबू. हनुमान जी का आशीर्वाद ले लीजिए. श्रद्धा से जो मन करे, रख दीजिए.’ गया के एक मंदिर में एक पुजारी ने मेरे दोस्त को यह कहते हुए अपने पास बुलाया. मेरे दोस्त ने हनुमानजी की मूर्ति के चरण-स्पर्श कर आशीर्वाद तो ले लिया, लेकिन पैसे नहीं रखे. यह देख पुजारी क्र ोधित हो […]

‘आइए बाबू. हनुमान जी का आशीर्वाद ले लीजिए. श्रद्धा से जो मन करे, रख दीजिए.’ गया के एक मंदिर में एक पुजारी ने मेरे दोस्त को यह कहते हुए अपने पास बुलाया. मेरे दोस्त ने हनुमानजी की मूर्ति के चरण-स्पर्श कर आशीर्वाद तो ले लिया, लेकिन पैसे नहीं रखे. यह देख पुजारी क्र ोधित हो उठे और चिल्ला कर कहने लगे, ‘अरे रु को. कहां जा रहे हो. बिना पैसे दिये गये, तो तुम्हारा विनाश हो जायेगा.’ इसके बावजूद मेरा दोस्त अनसुना करके चलता बना.

एक अन्य दोस्त के साथ भी उसी मंदिर में एक पुजारी से इसी मुद्दे पर बहस हो गयी. मैंने पहले ही देख लिया था कि मंदिर के अंदर जितनी भी भगवान की प्रतिमाएं थीं, सबके साथ एक पुजारी चिपके हुए थे और लोगों को जबरदस्ती पास बुला कर टीका लगाते थे और उनसे पैसे रखवाते थे. डर कर मैंने किसी भी भगवान को पास जा कर प्रणाम नहीं किया. दूर से ही हाथ जोड़ लिये और कहा, ‘भगवान तुम्हारे दर्शन तो फ्री हैं, लेकिन तुम्हें पैर छूकर प्रणाम करना नहीं.’ मन में मैंने अपने पिताजी और स्कूल के शिक्षकों को सॉरी कहा, जिन्होंने हमेशा ही मुङो सिखाया है कि जिनका सम्मान करो, उनको पैर छू कर प्रणाम करो. यदि मैं ऐसा नहीं करता, तो मेरी जेब ही खाली हो जाती और शायद लौटने के लिए भी पैसे नहीं बचते. तब मेरी मदद करने न तो पुजारी आते और न ही मेरे भगवान.

फिर भी हमारे यहां धार्मिक स्थलों पर न जाने कितने ही चढ़ावे चढ़ते हैं. हमारा भारत भले ही गरीब हो, लेकिन यहां दुनिया के सबसे संपन्न धार्मिक प्रतिष्ठान मौजूद हैं. यहां भले ही वेंकटेश्वर भगवान बालाजी के लिए लाखों रुपये की कीमत वाला प्रसादम तैयार होता हो और भगवान जगन्नाथ की रसोई में विशेष तौर पर रथयात्र के दिनों में लाखों भक्तों का भोजन बनता हो, लेकिन इतनी भव्यता और इतने वैभवशाली देवताओं के देश भारत की जनता की स्थिति चिंतनीय है. यहां आज भी बहुत कुछ भगवान भरोसे ही है. जहां तक गरीबी का किस्सा है, वह तो हमारे भगवानों की ही तरह अपरंपार है.

पिछले दो दशकों से तमाम दावों के बावजूद न तो गरीबी घटी है और न ही गरीबी रेखा से नीचे रहनेवालों की स्थिति सुधरी है. इस महंगाई में जहां सात रुपये की चाय और 34 रुपये लीटर दूध हो, उस दौर में क्या पांच लोगों का परिवार भी ठीक तरीके से जीवन-यापन कर सकता है? मंदिरों में भगवान का वास है और देश में इतने मंदिर हैं कि यदि प्रमुख मंदिर ही यह तय कर लें कि वह अपने पास मौजूद धन से दरिद्र नारायण की सेवा करेंगे, तो देश में एक भी व्यक्ति भूखा सोने के लिए बाध्य नहीं होगा. माया-मोह से छुटकारा दिलानेवाले भगवान और मंदिर यदि अपनी इस ‘माया’ को मुक्त कर दें, तो शायद कोई भी भारतीय न तो भूखा सोयेगा, न ही बिना दवाई के मरेगा और न ही शिक्षा से वंचित रहेगा, लेकिन माया से दूर रहने की सलाह देनेवालों का माया से मोह छूटे तब तो. भक्तगण खुश रहें..

शैलेश कुमार

प्रभात खबर, पटना

shaileshfeatures@gmail.com

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें