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प्राथमिकता बने पर्यावरण

मैड्रिड के संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में एक बड़े बैनर पर महात्मा गांधी का संदेश प्रकाशित है- आप आज क्या करते हैं, उसी पर आपका भविष्य निर्भर करता है. इस सम्मेलन का आदर्श वाक्य ‘सक्रियता का समय अभी है’ है, लेकिन एक पखवाड़े के इस आयोजन की बहसों और घोषणाओं से ऐसा लगता है कि […]

मैड्रिड के संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में एक बड़े बैनर पर महात्मा गांधी का संदेश प्रकाशित है- आप आज क्या करते हैं, उसी पर आपका भविष्य निर्भर करता है. इस सम्मेलन का आदर्श वाक्य ‘सक्रियता का समय अभी है’ है, लेकिन एक पखवाड़े के इस आयोजन की बहसों और घोषणाओं से ऐसा लगता है कि इसमें भागीदारी देशों और संस्थाओं में जलवायु परिवर्तन तथा धरती के गर्म होने को लेकर अपेक्षित गंभीरता नहीं है.
इस सदी में वैश्विक तापमान की बढ़त को 1.5 सेंटीग्रेड के भीतर रखने के लक्ष्य पर लगभग सभी देशों की सैद्धांतिक सहमति है, परंतु अपनी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं से जुड़ी आवश्यकताओं को देखते हुए अनेक देश पर्यावरण से संबंधित अपनी वर्तमान योजनाओं में संशोधन करने के लिए तैयार नहीं है. इस जलवायु सम्मेलन का लक्ष्य ठोस संशोधनों के लिए व्यापक सहमति बना कर अंतिम निर्णय लेना था. यह संतोषजनक है कि 150 से अधिक देशों ने उत्सर्जन घटाने या उसे शून्य के स्तर पर लाने का वादा किया है.
यूरोपीय संघ और जलवायु परिवर्तन के कारण अस्तित्व के संकट की आशंका से घिरे छोटे द्वीपीय देशों की कोशिश है कि वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन में कटौती करने के लिए महत्वाकांक्षी पहलों का संकल्प लिया जाए, लेकिन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, रूस, चीन, कनाडा, भारत और ब्राजील जैसे बड़ी और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं ने संशोधित कार्यक्रमों के लिए सहमत नहीं है. इन देशों का कहना है कि वे पहले से ही कार्बन उत्सर्जन घटाने, स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन व उपभोग बढ़ाने तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए आवश्यक प्रयास कर रहे हैं. सम्मेलन में एक विभाजन विकसित और विकासशील देशों के बीच भी देखा गया.
वर्ष 1992 के रियो बैठक से लेकर 2015 के पेरिस सम्मेलन के पहले तक हुए सभी समझौतों में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने उत्सर्जन में व्यापक कटौती का वादा किया था. उन्हें उत्सर्जन में कमी लाने के अन्य देशों के प्रयासों में भी मदद करना था. अगले साल से लागू होनेवाले पेरिस सम्मेलन में सभी देशों ने ऐसी कटौती पर हामी भारी थी, जो विकसित देशों के लिए बड़े राहत की बात थी.
चीन, सऊदी अरब और ब्राजील के समर्थन के साथ भारत ने पूछा है कि 1992 से 2020 के बीच इस संबंध में विकसित देशों की पहलों के प्रमाण प्रस्तुत किये जाएं. इन चर्चाओं और विवादों के बीच यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर अभी धरती को बचाने के लिए गंभीरता नहीं बरती गयी, तो इस ग्रह पर मनुष्य समेत जीवों के अस्तित्व पर ही ग्रहण लग जायेगा. ऐसे में अंतरराष्ट्रीय सहयोग से इसके समाधान के लिए तत्पर होने की आवश्यकता है.
भारत ने जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करने, सौर ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने, प्लास्टिक को नियंत्रित करने तथा पानी व जंगल के संरक्षण की दिशा में कदम उठाया है, परंतु इतनेभर से संतोष करना ठीक नहीं है. जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित होनेवाले क्षेत्रों में भारत व दक्षिण एशिया हैं. सो, अब कोताही की गुंजाइश नहीं है. पर्यावरण को प्राथमिकता देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है.

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